राजस्थान का गौरवशाली इतिहास भारत भूमि के लिए अपने अलग ही मायने रखता है.. जिस तरह यहाँ के राजपूत शूरवीरों ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए जो योगदान दिया वो अमिट और अविस्मरनीय है, उसी तरह यहाँ के किले, महल, गढ़, आज भी यहाँ आने वाले सैलानियों के मन में अमिट छाप छोड़कर "गौरवशाली हिन्दुराज्य व्यवस्था" की यादें ताज़ा कर देते है.. लेकिन लगता है अब राजस्थान की गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहर को फिर "इटालियन कांग्रेस" की नज़र लग गयी है और उसका निशाना बन रहे राजस्थान की राजधानी जयपुर के एतिहासिक स्मारक और धरोहर. जयपुर अपनी प्राचीन इमारतों के लिए एक प्रसिद्द शहर है और उन्ही में से एक है 18 वीं शताब्दी में बना हुआ "जलमहल", जो अपनी अदभुत स्थापत्यकला और नक्कासी का बेजोड़ नमूना है और गौरवशाली हिन्दुराज्य कि पहचान है. लेकिन अब ये अब कांग्रेसी भ्रष्टाचार कि भेंट चढ़ गए है.. जलमहल और उसकी झील का बड़ा इलाका शुरू से ही रसूखदार गिध्द्धों के निशाने पे था इसके लिए उन्होंने दुनिया कि सबसे भ्रष्ट पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर लम्बी - चौड़ी कार्यप्रणाली बनाकर पहले जल महल झील में शहर कि गंदगी निकासी के दो बड़े नाले जल-महल में मिलाए, फिर जल-महल झील के पुनःउद्धार के नाम से भ्रष्टाचारियों को जल-महल पर कब्ज़ा करने कि मूक सहमति दे दी..
जलमहल झील तब - 2005 |
कांग्रेसी फर्जी कंपनी जलमहल रिसॉर्ट प्राइवेट लिमिटेड (जेएमआरएल)और सरकार के बीच हुए कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार 432 एकड़ की जमीन 99 साल के पट्टे पर जेएमआरएल को दे दी गई। 2005 में प्रोजेक्ट शुरू हुआ और तय यह हुआ कि जेएमआरएल जलमहल को कम्प्लीट टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में डिवेलप करे और बदले में व्यापारिक लाभ कमाए। इसके लिए 100 एकड़ में रेस्तरां, हैंडीक्राफ्ट बाजार, थिएटर, बजट होटल, कन्वेंशन सेंटर, एक लग्जरी रिसॉर्ट और स्पा जैसी चीजें डिवेलप करने की अनुमति दी गई। 2012-2013 तक कम्प्लीट होने वाले इस प्रोजेक्ट पर 500 करोड़ रुपए की लागत आएगी। लेकिन ये सब बेवकूफ जनता को और ज्यादा बेवकूफ बनाने के लिए प्लान था.!
जलमहल झील अब -2010 |
अब जेएम्आरएल के द्वारा वहां जिस तरह से तोड़-फोड़ कि जा रही है.. जिस तरह से झील में मिटटी डाली जा रही उसको देखकर मूर्खतम इंसान भी अंदाजा लगा सकता है वास्तव में वहां क्या हो रहा है. कांग्रेस का प्लान झील को सुखाकर उसे मिटटी से पाटकर अपने चमचों और हितेषियों को वहां अवैध कब्ज़ा देने का है..
ऐसा नहीं है कि राज्य की पूरी जनता ही "कांग्रेसी" हो गयी है.. भलमानुष
लोगों ने इस घोटाले और धोखाधड़ी के खिलाफ "हाई-कोर्ट " में अर्जी लगायी तो न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम-22 जयपुर शहर ने जलमहल झील लीज में धोखाधड़ी व जलमहल स्मारक में स्थित मजार व मंदिरों में आवाजाही पर पाबन्दी को लेकर दर्ज प्राथमिकी में ब्रह्मपुरी पुलिस की ओर से लगाई अंतिम रिपोर्ट (एफआर) को अस्वीकार कर दिया। उच्चतम न्यायालय व राजस्थान उच्च न्यायालय के कानूनी दृष्टांतों व निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने (जलमहल लीज प्रकरण) के आदेश में कहा कि अनुसंधान अधिकारी मात्र इस आधार पर उचित व सही अनुसंधान करने से नहीं बच सकता कि परिवाद उसके क्षेत्राधिकार का नहीं है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) की भी यही मंशा रही है कि जब अदालत द्वारा परिवाद थाने पर भेजा जाता है तो अनुसंधान अधिकारी का कर्तव्य है कि वह उसमें प्राथमिकी दर्ज कर सही व उचित अनुसंधान कर नतीजा रिपोर्ट पेश करे।
वहीं अदालत ने (जलमहल स्मारक में स्थित धार्मिक स्थलों में पूजा-अर्चना पर रोक प्रकरण) थानाधिकारी अशोक चौहान के सीआरपीसी की धारा 157 (1) बी में पेश परिवाद को अस्वीकार कर दिया। अदालत ने आदेश में कहा कि धारा 156 (3) में परिवाद को अनुसंधान के लिए भेजा है। धारा 157 व अन्य कानूनी प्रावधान इस परिवाद पर लागू होना नहीं पाया जाता है। अदालत ने दोनों प्रकरणों को थानाधिकारी के पास भिजवाकर उचित व सही अनुसंधान के बाद नतीजा पेश करने को कहा.
यह कहा एफआर में
ब्रह्मपुरी थानाधिकारी ने जलमहल लीज में धोखाधड़ी मामले में दर्ज प्राथमिकी पर यह कहते हुए एफआर लगाई कि परिवादी भगवत गौड़ का परिवाद उनके क्षेत्राधिकार के बाहर का है। इस पर परिवादी के अधिवक्ता अजय कुमार जैन ने सर्वोच्च न्यायालय के रसिक दलपत राम ठक्कर प्रकरण का हवाला देते हुए कहा कि धारा 156 (3) में अनुसंधान के आदेश के बाद कोई भी थानाधिकारी क्षेत्राधिकार के आधार पर अनुसंधान करने से मना नहीं कर सकता है। धार्मिक स्थलों पर पूजा-अर्चना पर रोक संबंधी परिवाद में अनुसंधान के साक्ष्य नहीं होने को कहकर एफआर लगा दी गई, जिस पर परिवादी बाबू खान के अधिवक्ता अश्विनी बोहरा व अवधेश शर्मा ने प्रार्थना-पत्र लगाकर बताया कि धारा 156 (3) में भेजे परिवाद पर अनुसंधान अधिकारी को जांच कर नतीजा पेश करना होता है। अनुसंधान अधिकारी का यह कृत्य कानून के विपरीत है।
बात साफ़ है कि "कर्णाटक" में भ्रष्टाचार का हो-हल्ला मचाने वाले कांग्रेस्सियों को "राजस्थान कांग्रेस" के महानरेगा, सेज, सोलर पॉवर, दवाई घोटाले क्यूँ नज़र नहीं आते है. ?? या फिर सब "चमचों" को मोहनदास गांधी और गाँधी परिवार के बन्दर बना दिए गया है.. ??
Sirji,
ReplyDeleteI am 100% agree with you that Congress is Detroying Hindu & Hindustan..
Good Post, Keeep Wirting..
Surendra Surana.
Gurgaon
हिन्दू मर्यादा और भारतीय गौरव को समाप्त करना ही कांग्रेश क़ा कार्य है हो भी क्यों न सोनिया क्या जाने भारतीय परंपरा उसे भारतीय गौरव से क्या मतलब रहा सोनिया पार्टी क़ा तो ये सबके सब गोरे चमड़ी क़े गुलाम है कोई पी.यच.डी.करले या एम् बी.ये करने से देश भक्त नहीं हो जाता कमसे काम बर्तमान प्रधान मंत्री को तो भारतीय से कोई लेना देना नहीं है भारतीय स्वाभिमान को हमें स्वयं ही बचाना पड़ेगा.
ReplyDeleteबहुत ही ओजस्वी लेख
ReplyDeleteब्लागजगत पर आपका स्वागत है ।
किसी भी तरह की तकनीकिक जानकारी के लिये अंतरजाल ब्लाग के स्वामी अंकुर जी, हिन्दी टेक ब्लाग के मालिक नवीन जी और ई गुरू राजीव जी से संपर्क करें ।
ब्लाग जगत पर संस्कृत की कक्ष्या चल रही है ।
आप भी सादर आमंत्रित हैं,
http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/ पर आकर हमारा मार्गदर्शन करें व अपने सुझाव दें, और अगर हमारा प्रयास पसंद आये तो हमारे फालोअर बनकर संस्कृत के प्रसार में अपना योगदान दें ।
धन्यवाद
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
मत बनो गांधी के बन्दर आँखें खोलो भारत देश की महान जनता ! देश पुकार रहा है.
ReplyDeleteइस ब्लॉग और आलेख की पुकार सुनो.
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बहुत ही जोरदार और धारदार लेखन है आपका. शुभकामनायें अधिक वीरतापूर्ण लिखने के लिये.
बहुत शानदार भाई... कांग्रेस तो रामसेतु को भी नष्ट करना चाहती है फिर जल महल और अन्य क्या...? अपनी धरोहरों के प्रति हमे ही सचेत रहना होगा....
ReplyDeletesarvpratham hindi blog jagat me aapka hardik swagat hai.
ReplyDeletebahut hi badhiya raha aapka ye prastuti karan.
hamaari shubh-kamnaaye aapke saath hain.
poonam
@दीर्घतमा जी,
ReplyDelete@ लोकेंद्रजी,
@अजयकुमार जी,
@इ-गुरु राजीवजी,
@आनंद पाण्डेय जी
@ पूनम श्रीवास्तवजी,
मेरा हौंसला बढाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कोशिस करूँगा कि "देश और समाज" के दुशमनो के खिलाफ अविराम लिखता रहूँ.. बस आप का सहयोग मिला तो अपना ये काम निरंतर जारी रखूँगा..
राजेंद्र-
हिंदुत्व और राष्ट्रव्वाद,
आपके नये ब्लाग के साथ आपका स्वागत है। अन्य ब्लागों पर भी जाया करिए। मेरे ब्लाग "डिस्कवर लाईफ़" जिसमें हिन्दी और अंग्रेज़ी दौनों भाषाओं मे रच्नाएं पोस्ट करता हूँ… आपको आमत्रित करता हूँ। बताएँ कैसा लगा। धन्यवाद...
ReplyDeleteऔजस्वी लेख।अगर हिदू धर्म से अस्पृश्यता मिट जाए तो यह धर्म विश्व का श्रेष्ठ धर्म बन जाएगा।
ReplyDeleteइस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteकुरान आतंक फैलाती है
ReplyDeleteसऊदी अरब कें मुल्ला से से एक फतवा इस विषय पर लिया गया ।
प्रश्न:
क्या काफिर (गैर-मुस्लिम) पर इस्लाम स्वीकार करना अनिवार्य है ?
उत्तर:
हर काफिर पर, चाहे वह ईसाई या यहूदी ही क्यों न हो, इस्लाम धर्म को स्वीकारना अनिवार्य है, क्योंकि अल्लाह तआला अपनी किताब में फरमाता है:
(सूरतुल आराफ: 158)
अतः तमाम लोगों पर अनिवार्य है कि वे अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर ईमान लायें, किन्तु इस्लाम धर्म ने अल्लाह तआला की दया और हिकमत से गैर-मुस्लिमों के लिए इस बात को भी जाईज़ ठहराया है कि वो अपने धर्म पर बाक़ी रहें, इस शर्त के साथ कि वो मुसलमानों के आदेशों (नियमों) के अधीन रहें, अल्लाह तआला का फरमान है:
‘‘जो लोग अहले किताब (अर्थात यहूदा और ईसाई) में से अल्लाह पर ईमान नहीं लाते और न आखिरत के दिन पर (विश्वास रखते हैं ) और न उन चीज़ों को हराम समझते हैं जो अल्लाह और उसके पैग़म्बर ने हराम घोषित किए हैं, और न दीने-हक़ (सत्य-धर्म ) को स्वीकारते हैं, उन से जंग करो यहाँ तक कि वह अपमानित हो कर अपने हाथ से जिज़्या (टैक्स) दें।’’ (सूरतुत्तौबा:29) इसलिए उलमा (बुद्धिजीवियों ) के कथनों में से उचित कथन के अनुसार यहूदियों एंव ईसाईयों के अतिरिक्त अन्य काफिरों (गैर-मुस्लिमों) से भी जिज़्या स्वीकार किया जाये गा।
सारांश यह कि ग़ैर-मुस्लिमों के लिए अनिवार्य है कि वो या तो इस्लाम में प्रवेश करें या इस्लामी अहकाम (शासन) के अधीन हो जायें। और अल्लाह ही तौफीक़ देने वाला है ।
।पूरा फतवा पढ़ने के के लिए
http://www.hindusthangaurav.com/books/hi_Is_it_Oblibatory_for_Non-Muslims_to_Accept_ISLAM.pdfwww.hindusthangaurav.com
कुरान आतंक फैलाती है
ReplyDeleteसऊदी अरब कें मुल्ला से से एक फतवा इस विषय पर लिया गया ।
प्रश्न:
क्या काफिर (गैर-मुस्लिम) पर इस्लाम स्वीकार करना अनिवार्य है ?
उत्तर:
हर काफिर पर, चाहे वह ईसाई या यहूदी ही क्यों न हो, इस्लाम धर्म को स्वीकारना अनिवार्य है, क्योंकि अल्लाह तआला अपनी किताब में फरमाता है:
(सूरतुल आराफ: 158)
अतः तमाम लोगों पर अनिवार्य है कि वे अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर ईमान लायें, किन्तु इस्लाम धर्म ने अल्लाह तआला की दया और हिकमत से गैर-मुस्लिमों के लिए इस बात को भी जाईज़ ठहराया है कि वो अपने धर्म पर बाक़ी रहें, इस शर्त के साथ कि वो मुसलमानों के आदेशों (नियमों) के अधीन रहें, अल्लाह तआला का फरमान है:
‘‘जो लोग अहले किताब (अर्थात यहूदा और ईसाई) में से अल्लाह पर ईमान नहीं लाते और न आखिरत के दिन पर (विश्वास रखते हैं ) और न उन चीज़ों को हराम समझते हैं जो अल्लाह और उसके पैग़म्बर ने हराम घोषित किए हैं, और न दीने-हक़ (सत्य-धर्म ) को स्वीकारते हैं, उन से जंग करो यहाँ तक कि वह अपमानित हो कर अपने हाथ से जिज़्या (टैक्स) दें।’’ (सूरतुत्तौबा:29) इसलिए उलमा (बुद्धिजीवियों ) के कथनों में से उचित कथन के अनुसार यहूदियों एंव ईसाईयों के अतिरिक्त अन्य काफिरों (गैर-मुस्लिमों) से भी जिज़्या स्वीकार किया जाये गा।
सारांश यह कि ग़ैर-मुस्लिमों के लिए अनिवार्य है कि वो या तो इस्लाम में प्रवेश करें या इस्लामी अहकाम (शासन) के अधीन हो जायें। और अल्लाह ही तौफीक़ देने वाला है ।
।पूरा फतवा पढ़ने के के लिए
http://www.hindusthangaurav.com/books/hi_Is_it_Oblibatory_for_Non-Muslims_to_Accept_ISLAM.pdf
www.hindusthangaurav.com
congress to vote ke liye kahiraat bantne main lagi hai use rajsthan ki dhrohar or rajasthan ki bhasa se koi matlab nahi hai. congress janta ko ulu banakar kevel raaj karne ki taak mai l;agi rahti hai
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