मुझे ये समझ में नहीं आता... राजनीति कब से इतनी सीधी होने लगी जितनी हम देख रहे है.
भिंडरावाले को अकाली दल के खिलाफ खड़ी कर देने वाली कांग्रेस, लिट्टे के गढ मे इंडियन आर्मी भेज देने वाली कांग्रेस कब से इतनी सीधी और सरल हो गयी की राजनीति की दुनिया मे एक नौसिखिया "अरविन्द केजरीवाल" उसे चुनौती देने लगे. मुखर मध्यम वर्ग को अपने ही एक एजेंट के पीछे लगा कर विपक्षी पार्टी "भाजपा" के मात्र तीन प्रतिशत वोट काट कर उसे उन्नीस प्रतिशत सीटो का नुकसान कराने का गंडित है, साथ मे चित भी अपनी और पट भी..
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फिलहाल तो सभी इस बन्दर की उछल - कूद देखने में व्यस्त है.. धुआं और धुंध छटने दीजिये...
तब जाकर समझ में आएगा की ये भी "कांग्रेस का एजेंट" निकला...
राजेंद्र