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Friday, October 22, 2010

अगर ये "इंसानियत" है तो "हैवानियत" किसे कहेंगे - Roja Iftaar Dawat In Saudi Arabia

इस्लाम धर्म में बहुत सी ऐसी बातें है जो समाज और इंसानियत के खिलाफ है.. जब कहीं भी ऐसे बिन्दुओं को उठाया जाता है तो अपनी गलती मानने के बजाय कुछ "इस्लाम के ठेकेदार" मारने और काटने दौड़ते है...



नीचे दी गयी तसवीरें "सउदी अरब" के शहर "जेद्दाह" की जहाँ पर "रोजा इफ्तार दावत" (?) का आयोजन किया जा रहा है... अपने आप को समझदार और रईस कहने वाले "जाहिल और गंवार" लोगों की कुछ कारगुजारियां देखे..


(कृपया कमजोर दिल वाले इन तस्वीरों को न देखे)



इन भूखे गिद्दों के लिए "रोजा-इफ्तार" की दावत (?) शुरू होने वाली है..





इन "हैवानों" की नज़र तो देखिये...
 

टूट पड़ने की तैयारी में ये भूखे हैवान...
 



इन "भेडियों" के लिए "गोश्त" पकाया जा रहा है...ज़रा गौर से देखिये कितने "निरीह जानवरों" को मारा गया..
 

और ये भूखे "गिद्ध और कुत्ते"  टूट पड़े...इसमें न जाने कितने "निरीह जानवर" हलाल है..



ये तो "हैवानों" से भी ज्यादा गए-गुजरे निकले.



कौन सा-ला कहता है    "इस्लाम में इंसानियत"       के लिए ज़गह है गौर से देखिये "निरीह जानवरों" के अंग.




क्या इसे ही कहते है "इंसानियत"..?? अगर ये इंसानियत है तो "हैवानियत" क्या है..??
 




क्या यही "इस्लाम और कुरआन की पवित्र" (?) शिक्षाएं...??
 

सिर्फ 15  "हैवानो" के लिए  250  "निरीह जानवरों की बलि दी गयी.. बाकी का खाना(?) "अरब सागर" के हवाले...


- ये तो था "इस्लामिक हैवानों" का एक रूप, दुसरे रूप में देखिये "दुनिया में भूखमरी" की मार -



भूख से बिलखते असली मासूम....



प्रधानमंत्रीजी ये है असली मासूम....




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आगे से जब भी आप बचा हुआ खाना फैंके तो पहले ये सोच ले की आप "इंसान" है या "हैवान".........


"मुसलमान" और "इस्लाम" के ऐसे हैवानी रूपों से दुनिया भरी पड़ी है.. जो निरीह जानवरों तक को न छोड़े वो काहे का मज़हब...?????

क्या ऐसा मज़हब कभी अमन-ओ-चैन की सीख दे सकता है...?? शायद नहीं.. कभी नहीं.

Sunday, October 10, 2010

भारतीय मुसलमानों, ज़रा सी "काफिरगिरी" कर लो.. Ayodhya Verdict Neglect by Muslim Leaders

अयोध्या फैसला आने के बाद 24 घंटों के अन्दर "इस्लाम के ठेकेदारों" के पेट में दर्द शुरू हो गया और अभी तक बदस्तूर जारी है. ये "इस्लाम के ठेकेदार" नहीं चाहते है की भारत में शांति बनी रहे और भारत का आम मुसलमान इस देश की प्रगति में भागीदार बन सके. पाकिस्तान में बैठे अपने आकओं के इशारे पर ये "इस्लाम के ठेकेदार" आम भारतीय मुसलमान के ज़ेहन में ज़हर भर रहे है. इनमे से कुछ प्रमुख इस्लाम के ठेकेदार है. "जाकिर नाइक", "इमाम बुखारी (बिमारी)", "सैयेद अहमद गिलानी", "सीमा पार बैठे उनके आका" और कुछ "जयचंद भारतीय प्रगतिशील पत्रकार और लेखक" .

शाह नवाज़ जैसे भारतीय नागरिक ने जब फैसले को अदालत का आदेश माना तो इस्लाम के ठेकेदार "जाकिर नाइक" ने उसे "काफिर" तक कह दिया. मतलब जो इस्लाम में "कट्टरपंथी" नहीं वो "काफिर" है जिनमे से कुछ काफिर है "हमारे प्रेरणास्त्रोत डॉ अब्दुल कलाम", "शाह नवाज़", शिया नेता "कल्वे जव्वाद: आदि...

"नई दुनिया" में एक मुसलमान "सैइद अंसारी", (जो न्यूज़ 24 में एंकर भी है और 24 घंटे लगातार एंकरिंग के लिए जिनका नाम " लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स" में शामिल हो चूका है) का एक लेख छपा जो "इस्लाम के ठेकेदारों" के मुह पार करार तमाचा है -

प्रस्तुत है "सैयेद अंसारी" का वो लेख - -

"जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर, या फिर वो जगह बता जहाँ खुदा न हो।"

शराब इस्लाम में हराम है। खुदा की इबादत के लिए किसी चहारदीवारी की जरूरत नहीं है। खुदा तो पूरी कायनात में है। केवल इस्लाम ही नहीं, तमाम मजहबों की आत्मा भी इसी दर्शन के इर्द-गिर्द घूमती है। यह बात उन लोगों को समझनी चाहिए जो खुदा के नाम पर मस्जिद बनाने के लिए लाखों जिंदगियों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। इस्लाम का लबादा ओढ़े इन लोगों का असली मकसद अपने स्वार्थ और लालच की दुकानदारी चमकाना है। अयोध्या का रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद भी ऐसे ही लोगों की नफरत की राजनीति चमकाने का नतीजा है। यह विवाद जब तक चलता रहेगा, इनकी दुकानदारी भी तब तक चलती रहेगी।

30 सितंबर को दोपहर साढ़े तीन बजे जब पूरे देश के साथ दुनिया भर के लोग टीवी पर टकटकी लगाए अयोध्या पर फैसले का इंतजार कर रहे थे, ठीक उसी वक्त हिन्दुस्तान का एक आम हिन्दू - मुसलमान डरा-सहमा खुदा से दुआ कर रहा था कि सब कुछ ठीक रहे। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले ने एक आम मुसलमान को तो संतुष्ट कर दिया, लेकिन यही फैसला मजहब की ठेकेदारी करने वाले चंद मुल्ला-मौलवियों को संतुष्ट नहीं कर सका। अब वे सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं और जाएँगे भी। इसके बाद भी अगर इनकी दुकानदारी बंद होती दिखती है तो कोई और रास्ता ढूँढ लेंगे, भले ही वो रास्ता नफरत और समाज को बाँटने का ही क्यों न हो। आखिर इनकी रोजी-रोटी का सवाल जो है और इस रोजी-रोटी को मजहबी जामा पहनाकर मुसलमानों को कैसे गुमराह करना है, ये बखूबी जानते हैं। ये लोग खुदा के घर के नाम पर तमाम जिंदगियाँ तबाह करने पर उतारू हैं।

क्या इन्होंने कभी सोचा है कि खुदा की सबसे प्यारी चीज इंसान के लिए कुछ करें? क्या इन लोगों ने गरीबी के चक्र में फँसे करोड़ों मुसलमानों की जिंदगी की बेहतरी के लिए कोई संवैधानिक तरीके से लड़ाई आज तक लड़ी है? क्या बाबरी मस्जिद बन जाने से एक आम मुसलमान महिला की पथराई आँखों का वो इंतजार खत्म हो जाएगा, जो अपने सिसकते चूल्हे को देखते हुए मजदूरी पर गए पति का इंतजार करती है ताकि वह चूल्हे की आग अपने पति के कदमों की आहट मिलते ही थोड़ी और तेज कर सके? क्या मस्जिद बन जाने के बाद कहीं से कोई फरिश्ता आएगा और गरीबी को अपने साथ उड़ा ले जाएगा? फिर मुसमानों के बच्चे और महिलाएँ शिक्षित होंगी। उनके रुखे-सूखे संसार में खुशहाली आ जाएगी।

सचाई हम सबको पता है, वक्त का तकाजा है चिरनिद्रा को भगाने का और अपनी रूह को जगाने का। कट्टरवाद हर हिन्दुस्तानी मुसलमान में नहीं है। वो रेलवे प्लेटफॉर्म, रेल की बर्थ पर भी नमाज पढ़ता है। वो सड़क पर भी नमाज पढ़ता है, नमाज पढने के लिए उसे मस्जिदों या फिर किसी बाबरी मस्जिद की जरूरत नहीं है क्योंकि वो कितना ही गरीब-अमीर क्यों न हो, वो कितना ही पढ़ा-लिखा या अनपढ़-गँवार क्यों न हो, वो जानता है कि खुदा को केवल उसकी इबादत से मतलब है। वो इबादत उसने कहाँ की, इससे खुदा को कोई फर्क नहीं पड़ता। अल्लाह ने भी आलीशान मस्जिदें बनाने की हिदायत नहीं दी है। औलिया-अल्लाहों ने मस्जिदों और कब्रों को हमेशा कच्ची रखा, लेकिन बादशाहों, शाहंशाहों और मजहबी दुकानदारों ने कच्ची कब्रों को मकबरों में तब्दील कर दिया और मस्जिदों को अज्मतें बख्श दीं। जिस तरह से हमारे देश में सूफियों ने इस्लाम का संदेश दिया, वो संदेश प्यार-मोहब्बत, एकता और भाईचारे का था। इस संदेश से मुसलमानों पर विश्वास किया जाने लगा। मोहब्बत और इबादत हम जानने लगे। यह मोहब्बत आज भी हमारी संस्कृति को महका रही है। आज के मजहबी दुकानदार इन बुजुर्गों की पैरवी क्यों नहीं करते? क्यों जमीन के टुकड़े की जंग लड़ते रहते हैं? इन मौलवियों के कद इतने बुलंद क्यों नहीं होते हैं कि वीराने में भी कोई शाहंशाह चलकर इनके दर तक पहुँचे.

ये मुल्ला-मौलवी अपना किरदार ऐसा बुलंद क्यों नहीं करते कि किसी मस्जिद में जाने से हिन्दू न डरे और मंदिर में मुसलमान। इस मुल्क में मुल्ला-मौलवियों ने कभी यह नहीं सोचा कि मुसलमानों को शिक्षा दी जाए। मुसलमानों के बच्चों के लिए आधुनिक तालीम के अवसर पैदा किए जाएँ। उनके लिए अस्पताल खोले जाएँ। क्यों इन लोगों ने मुसलमानों को सिर्फ मजहबी जुनून की तरफ मोड़ा है। ये मजहब के दुकानदार क्यों कभी भी मुसलमानों के संपूर्ण विकास के लिए आवाज बुलंद नहीं करते हैं। चंदा उगाही सिर्फ मस्जिद के नाम पर ही क्यों करते हैं ये लोग? वक्त आ गया है कि इस्लामी मदरसों से ऐसी आवाज बुलंद हो जिससे इस्लाम के उपदेशों के आधार पर इनसानियत को नई जिंदगी मिले और मुसलमानों को नए-नए रोजगार के अवसर। क्यों ये जिद करते हैं अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की? क्यों एक बार फिर ये आम मुसलमान को डराना चाहते हैं? क्या ६१ सालों तक मुसलमानों के दिल में खौफ और डर पैदा करके इनका मन नहीं भरा?

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के बाद देश के नागरिकों को यह विश्वास हुआ कि अब वे सुरक्षित हैं और अब दंगे नहीं हो सकते। अब उनका कारोबार नहीं उजड़ेगा, अब हर रोज उनके घर में चूल्हा जलेगा। अब उनके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। अदालत के फैसले के बाद देश का हिन्दू - मुसलमान चैन की साँस ले रहा है। उसे फिजां में अमन की खुशबू आ रही है। वह सुकून महसूस कर रहा है लेकिन मजहब के ये दुकानदार बाबरी मस्जिद मामले को जिंदा रखकर अपनी दुकानदारी चलाना चाहते हैं। नहीं चाहते ये मुल्ला-मौलवी कि सुकून में रहे देश का मुसलमान क्यूंकि अगर वो सुकून से रहा तो बंद हो जाएगी बाबरी मस्जिद की दूकान। रूक जायेगा बाबरी मस्जिद के नाम पार करोड़ों रूपये उगाहने का धंधा। इसलिए नहीं चाहते ये लोग की प्यार से रहे देश के "हिन्दू-मुसलमान"। आज देश के "हिन्दू- मुसलमानों" ऐसा माहौल चाहिए जिसकी बुनियाद भाईचारे, अमन और शांति पार टिकी हो, न कि नफ़रत और हिंसा पार टिकी हो। यह आज के हिन्दुस्तान कि पुकार है"
- सैइद अंसारी
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अब भारतीय मुसलमानों को सोचना होगा कि वो क्या एक "सच्चे हिन्दुस्तानी" बनकर नहीं रह सकते ..?? उन्हें ये भी सोचना होगा कि वो अपना आदर्श किसे माने "ज़हर फ़ैलाने वाले जाकिर नाईको" को या देश के गर्व "अब्दुल कलामों" को.. ??

Tuesday, October 5, 2010

कमाल है.!!!! बड़े ब्लागरों और पत्रकारों का "सहिष्णुता और भाईचारे" का नकाब इतना जल्दी उतर गया.- Ayodhya judgment Neglect by Bloggers & Journalist.

अयोध्या मुद्दे पर फैसला आने के कुछ दिन पहले से ही हर अखबार और चैनल पर "हिन्दू-मुसलमानों" को सहिष्णुता और धैर्य की घुटी पिलाई जा रही थी और इनका बखूबी साथ दे रहे थे हमारे ब्लॉग जगत के कई जाने माने महारथी; उनमे सब से आगे थे सलीम खान (स्वच्छ सन्देश), शरीफ खान (हक़नमा), तौशिफ (दाबिर न्यूज़), सफत आलम तैमी, छदम इम्पैक्ट (शायद अनवर जमाल) और जयचंद नीरेंद्र नागर (एकला चलो रे), शेष नारायण (माफ़ कीजिये - अवशेष नारायण (विस्फोट) इत्यादि. इनलोगों ने बार-बार अपील की कि अदालत का फैसला चाहे कुछ भी आये, पर हमें इसका सम्मान करना चाहिए,  (शायद इसलिए कि ये सब इस मुगालते में थे कि केंद्र में हमारी सरकार है और फैसला हमारे कि हक में आएगा, और वहां सिर्फ "बाबरी मस्जिद" ही बनेगी).

मुझे बहुत अजीब सा लगा कि जो लोग बात बात पर हिन्दुओं पर तोहमत लगाते है वो लोग इतनी शिद्दत से देश में शांति कि अपील कैसे कर सकते है. खैर मन में एक सुकून था कि चलो इस मुद्दे पर तो ये लोग देश को बंटाना नहीं चाहते है, पर मैं गलत था, फैसला आने के 24 घंटे के अन्दर इन लोगों ने वही राग अलापना शुरू कर दिया जो पाकिस्तान हमेशा कश्मीर पर अलापता आया है. इन लोगों ने फैसले को एक तरफा करार दिया और बड़े बड़े लेख लिख डाले कि "फैसला में हिन्दू जीत गया पर हिन्दुस्तान और कानून हार गया". इस बार इन्होने अपने जज न्यायमूर्ति एस क्यू खान को भी लपेटे में ले लिया.

इन महान पत्रकारों(?) ने अपना दोगला चरित्र अब दिखाना शुरू कर दिया, एक तरफ तो ये "सहिष्णुता" का मुखौटा ओढ़े हुए है, वही दूसरी तरफ हिन्दुओं और न्याय व्यवस्था को पानी पी पी कोस रहे है. सलीम खान का दोगलापन तो मुझे अच्छे से मालूम था कि ये भेड़ का लबादा ओढ़े हुए भेडिया बोल रहा है पर अव-शेष नारायण भी अपने "सेक्युलर शोरूम" पर ताला लगने के डर से घबरा गए और इस फैसले को एक तरफा तक करार दे दिया. नीरेंद्र नागर की भाजपा से जलन इस बात से साफ़-साफ़ झलकती है कि "भाजपा इस फैसले पर खुश नहीं है और भाजपा कि हार हो गयी". मुसलमानों के पक्षधर बनने वाले नीरेंद्र नागर ने शायद अब "फेस रीडिंग पत्रकारिता" की नयी शुरुआत" कर दी है सलीम खान जो कल तक सहिष्णुता का भाषण झाड रह था आज उसने इस फैसले के खिलाफ नयी श्रंखला शुरू कर दी,

तो क्या ये "सहिष्णुता और धैर्य" का पालन करने का आदेश सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही था ??

कांग्रेस के मुखपत्र  और  बिकाऊ पत्रकारिता और पेड न्यूज़ में नए आयाम स्थापित कर चुके "नवभारत टाइम्स" ने एक लेख में लिखा "मुसलमानों के पक्ष में फैसला आने से कट्टरपंथी हिन्दू और भगवा ब्रिगेड द्वारा हिंसा फैलाये जाने की पूरी-पूरी सम्भावना है"  मैं तो आज तक यही सुनाता आया था की हिन्दू सहिष्णु होते है और मुसलमान कट्टरपंथी होते है फिर ये नवभारत टाइम्स हिन्दुओं को किस बिनाह पर कट्टरपंथी और असहिष्णु घोषित करने में लगा है ये आप अच्छी तरह से समझ सकते है.



नभाटा की वो खबर जिसमे हिन्दुओं को कट्टरपंथी बताया है

अब कुछ सवाल -

जगजाहिर है की अयोध्या भगवान् श्री राम की जन्मभूमि है और वहां पर मंदिर था, ये बात न्यायलय मान चूका है, वहां जो 3 न्यायमूर्ती बैठे थे वो कानून के ज्ञाता थे, उन्होंने सुन्नी वक्फ बोर्ड की इस दलील को ख़ारिज कर दिया की वहां सिर्फ बाबरी मस्जिद ही थी और वो पूरी ज़मीन बाबरी मस्जिद को दे दी जाए. फिर भी माननीय जजों ने "भारत के सांप्रदायिक सदभाव" को तरजीह देते हुए १/३ हिस्सा मुसलमानों के "दान" में दिया फिर भी हिन्दू सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं बोला, क्या ये हिन्दुओं के सहिष्णुता और धैर्य का प्रमाण नहीं है..??


जिस तरह से "हिन्दुओं" ने सहिष्णुता का परिचय देते हुए अपने विधाता श्री राम की ज़मीन का हिस्सा देना कबूल कर लिया, क्या कोई मुसलमान "काबा, मक्का और मदीना" में एक इंच भी ज़मीन कोई मंदिर बनाने के लिए दे सकता है..??

जिस तरह से हिन्दु अपनी जीत पर सिर्फ "सौहार्द और भाईचारे" के लिए अपनी ख़ुशी मनाने की बजाय शांति से अपने घर में रहे, क्या ये फैसला मुसलमानों के पक्ष में आता तो क्या वो मुसलमान जो "पाकिस्तान की जीत पर जश्न मानते हुए पूरे शहर में पटाखे फोड़ते है" हिन्दुओं की भावनाओ का सम्मान करते...??


तो फिर किस बिनाह पर हिन्दुओं को "असहिष्णु और कट्टरपंथी" कहा जा रहा है..???

फिर क्यों ये अपने आप को पत्रकार समझने वाले ब्लॉगर गिरगिट की तरह रंग बदल रहे है..???

Monday, September 20, 2010

"भगवा" का मतलब और कुछ सवाल: -

पिछले दिनों हमारे गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने "भगवा आतंक" का बयान देकर एक समुदाय विशेष को लट्टू तो कर लिया. लेकिन इस बयान पर जो प्रतिक्रिया आयी उसे देखकर सत्तारूढ़ कांग्रेस और गृहमंत्रीजी के होश उड़ गए. "सत्तारूढ़ कांग्रेस" अपना बचाव करती नजर आयी, वही सेक्युलरवाद कि नयी परिभाषा गढ़ने वाले गृहमंत्री इस मोर्चे पर बिलकुल अलग-थलग पड़ते नजर आये. हिन्दू साधू संतों के आलावा सिख, बौध धर्म के संतों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त कि क्यूंकि "भगवा या केसरिया रंग" न केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि सिख समुदाय और बौध धर्म के लिए पूजनीय है और फिर इस हिन्दू बहुल देश में "भगवा" को पवित्र न मानाने वाले कठमुल्लों कि तादाद ही कितना है इसलिए ये प्रतिक्रिया तो होनी ही थी.

 "भगवा" एक पवित्र रंग है, जिसको सदियों से हमारे साधू-संत पूजते आ रहे है. सूर्य में जो आग है वो रंग भी भगवा है. "केसरिया" या "भगवा" रंग शौर्य और वीरता का प्रतिक है. इस रंग को पहनकर न जाने कितने वीरों ने अपना बलिदान दिया. साधू-संतों का समागम हो या, हिन्दू मंदिरों कि ध्वजा हो या फिर सजावट सभी में शान का रंग भगवा है. भगवा रंग में हिन्दू धर्म कि आस्था, दर्शन और जीवनशैली छुपी हुई है. भगवा या केसरिया सूर्योदय और सुर्यास्त का रंग है, मतलब हिंदू की चिरंतन, सनातनी, पुर्नजन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है यह। आग और चित्ता या कि अंतिम सत्य का भी यह रंग है। इसी रंग के वस्त्र धारण कर हिंदू, बौद्र साधू संत विदेश गए। दुनिया को शांति का धर्म संदेश दिया। दुनिया की दूसरी सभ्यताओं, संस्कृतियों के अपने रंग है जबकि भगवा की पहचान इसलिए है क्योंकि वह सिर्फ हिंदुस्तान में हिंदू-बौद्व-सिक्खों का प्रतिनिधि रंग रहा है। हिंदूओं के लिए यह शौर्य और त्याग का भी रंग है। महाराणा प्रताप और शिवाजी के झंडे भगवा ही तो थे।

इसी भगवा और इसी भगवा के साथ चिंदबरम ने आंतकवाद को जोडा है। उन्होने बकायदा पुलिस प्रमुखों की बैठक के भाषण में भगवा आतंकवाद को देश के लिए नई चुनौती बताया। जाहिर है साध्वी प्रज्ञा और कुछ अज्ञात हिंदूवादी संगठनों के लोगों की धरपकड को चिदंबरम ने भारत के लिए खतरा माना है। यदि ऐसा है तब भी चिदंबरम देश के गृह मंत्री है। उन्हे मालूम है कि अभी तक अदालत में इन लोगों पर लगे आरोप पुष्ट नहीं हुए है। ऐसे में चिदंबरम कैसे यह मान सकते है कि आंतकवाद की घटनाओं से प्रतिक्रिया में पगलाएं पांच-छह सिरफिरे हिंदू लोग भगवा आतंकवाद की बानगी है। क्या इन छह-आठ लोगों की बानगी पर करोडों हिंदूओं के प्रतिक रंग भगवा से आंतकवाद को जोडा जाएगा।
आज हर एक भारतीय चिदम्बरम से कुछ सवालों के जवाब जानना चाहता है. जिसका जवाब शायद "सेक्युलरवाद कि रोटियाँ तोड़ने वाली इस कांग्रेस के किसी भी "रीढविहीन नेता" के पास नहीं है".

1. सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी "भगवा या "केसरिया" है. तो क्या सूर्य को आतंकवादी मान लिया जाए और "कांग्रेस" पार्टी द्वारा इसे उदय होने से रोका जाए ..??


2. आज कांग्रेस पार्टी मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए "भगवा" को आतंकवादी बता रही है. उसी पार्टी के कई बड़े नेताओं जैसे ( जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आज़ाद, सरदार तारासिंह इत्यादि-) ने 1931 के कराची अधिवेशन में "भगवा" को राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया. तो आदरणीय गृहमंत्री कृपया यह बताये कि क्या ये सभी नेता "आतंकवादी" थे..?? अगर ऐसा है तो "कांग्रेस पार्टी" जो जवाहारलाल नेहरू के नाम कि रोटियां तोड़ रही है उसको सबसे बड़ी "आतंकी" पार्टी ही मन जाए ..??


3. भगवा/केसरिया रंग भारतीय तिरंगे में सबसे ऊपर है तो क्या तिरंगे को "राष्ट्रीय ध्वज" न मानकर "आतंकवादी पताका" माना जाए..??


4. महाराणा प्रताप और शिवाजी के झंडे का रंग भगवा/केसरिया था. तो क्या ये माना जाए कि "देश" के लिए नहीं बल्कि "आतंक" के लिए लड़े थे.. ??
 5. "तिरंगे" में भगवा/केसरिया के आलावा " हरा" और "सफ़ेद" रंग भी है, तो क्या हरा रंग "इस्लामी" आतंक का और "सफ़ेद" रंग "इसाई आतंक" का प्रतिक है..?? 


दरअसल चिदम्बरम महोदय,  हर आम आदमी इस बात को समझ सकता है कि आपने "मुस्लिम वोट बैंक" कि राजनीती के लिए हिन्दू धर्म और भगवा को बदनाम किया है.. पर अबकी बार आपका ये पाशा उल्टा पड़ गया, इसलिए तो आपके पीछे भौं - भौं करने वाली सेल्युलरों कि जमात ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.. उनको ये भी पता चल गया कि बहुसंख्यकों पर आपके प्यारे अलाप्संख्यक कभी राजनीती नहीं कर सकते है. हालांकि चिदंबरम के बयान के बाद कांग्रेस पार्टी का रुख भी वोट के जोड़-घटाने के लिहाज से ठीक ही था। क्योंकि कांग्रेस पार्टी को देश के हर लोकतांत्रित संस्थानों में जितना वोट मिलता है, उसका करीब 80 प्रतिशत वोट हिंदुओं का होता है। यही जोड़-घटाना लगाकर कांग्रेस पार्टी ने गंभीर रुख अपना लिया। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस भगवा और भगवाधारियों का बड़ा सम्मान करती है। वह उसी का सम्मान करती है जिससे कि वोट मिले।

अच्छा तो ये होता कि आप सिर्फ "वेदांता" कि दलाली करते और ऐसे उलूल-जुलूल बयानों से बचाते तो शायद आपको गृहमंत्री के पद से हटाये जाने के बारे में न सोचा जाता .


-- "अंगडाई लेते हिंदुत्व" कि ये प्रतिक्रिया जायज भी है क्यूंकि जब भी किसी अन्य मजहब पर संकट आया है तो दूर देशों में बैठे हिमायतियों ने जमकर हो-हल्ला मचाया है. जैसे कि इस्लाम के पैगम्बर के कार्टून डेनमार्क में बनने पर भी दंगे भारत में किये जाते हैं। चीन और रूस में देशद्रोही मुसलमानों का दमन होने पर दुनिया भर के मुसलमान उत्तेजित हो जाते हैं। इसीलिए 1962 में भारत पर आक्रमण करने वाली चीन की सेनाओं का भारत के कम्युनिस्टों ने ‘मुक्ति सेना’ कहकर स्वागत किया था और इसीलिए जनता शासन (1977-79) में जब भारत में लोभ, लालच और जबरन धर्मान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाने का विधेयक श्री ओमप्रकाश त्यागी ने संसद में प्रस्तुत किया, तो उसका दुनिया भर के ईसाइयों ने विरोध किया था।-


एक लेख में "श्री तरुण विजय" लिखते है कि देश में अभारतीय मानसिकता का वैचारिक विद्वेष इस पागलपन के चरम तक पहुंच गया है कि इटालियन मूल की उस महिला को सुपर प्राइम मिनिस्टर बनाने में किसी कांग्रेसी या सेक्युलर को परहेज़ नहीं होता, जिसने विवाह के बाद 13 साल सिर्फ यह सोचने में लगा दिए कि वह भारत की नागरिकता ग्रहण करे या न करे, लेकिन भारत के गौरव और तिरंगे की शान के प्रतीक विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर शक पैदा कर उन्हें डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी का सम्मान देना रोक दिया गया था। भारत से गोरे अंग्रेज चले गए पर उन काले अंग्रेजों का राज कायम रहा, जिनका दिल और दिमाग हिंदुस्तान में नहीं बल्कि रोम, लंदन या न्यूयॉर्क में है।

लेकिन इस सारे हंगामे को देखकर "दिल में इस बात का कुछ सुकून जरूर हुआ कि सदियों से सोया हुआ "हिंदुत्व" अब अंगडाई ले रहा है" और वो दिन दूर नहीं जब इन सब सेक्युलर "घटोतकचों" को अपना अंजाम पता चल जायेगा...


 

Thursday, September 9, 2010

दहकते जम्मू-कश्मीर कि हकीक़त और बिकाऊ मीडिया का दोगलापन - Jammu-kashmir reality & Double Standerd of Media..

पिछले कुछ समय से जरूरी काम कि वजह से इस महा-अंतर्जाल से दूर रहा हूँ इस लिए पिछले १ महीने से कुछ भी नहीं लिख पाया..!! समाचार पत्र ही सूचना का एक मात्र जरिया था, लेकिन जिस पेज को मैंने उठाकर देखा उस पर सिर्फ ये "जम्मू-कश्मीर के भटके हुए" लोगों कि तस्वीरें और क्रियाकलाप छपा हुआ था, साथ में हमारी नपुंसक सरकार के रीढ़विहीन  मंत्रियों के "भटके और मासूम लोगों" के घावों(?) पर मलहम लगाते हुए बयान छपे थे..
लेकिन क्या ये जो खबरे इस बिकाऊ मीडिया में आ रही है. वो एकदम सही है. ?? या फिर हर कश्मीरी इन सब खबरों से इतेफाक रखता है..??? नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है. कश्मीर के लोगों को नाराजगी इस बात से है कि सारा मीडिया जो कुछ लिख रहा है या टीवी पर दिखा रहा है, वह केवल श्रीनगर घाटी के लोगों के बयानों पर आधारित है.. उनका मानना है कि मीडिया वाले श्रीनगर घाटी के आगे नहीं जाते है, इसलिए इनको आसपास के कस्बों, पहाड़ों और जंगलों में बसने वाले भारतीय कश्मीरियों के जज्बातों का पता नहीं है..
यह एक सही और रोचक तथ्य है जिसके लिए वास्तव में ये बिकाऊ मीडिया वाकई दोषी है, तो आईये आपको कश्मीर कि अलग तस्वीर से अवगत करवा देता हूँ जिसे शायद आप इस बिकाऊ मीडिया कि आपाधापी में कभी नहीं देख पाएंगे..
कश्मीर में  बड़ी तादाद गुर्जरों कि है. ये गुर्जर श्रीनगर के आसपास के इलाकों से लेकर दूर तक पहाड़ों में रहते है और भेड़-बकरियां चरातें है, कश्मीर में रहने वाले "कश्मीरी गुर्जर" और जम्मू में रहने वाले "डोगरे गुर्जर" कहलातें है, इनकी तादाद लगभग 30 लाख से ज्यादा है, दोनों ही इलाकों के गुर्जर इस्लाम कि मानाने वाले है, पर रोचल बात ये कि घाटी के तथाकतिथ अलगाववादी और मुस्लिम नेता गुर्जरों को मुसलमान नहीं मानते है. पिछले दिनों सैयाद शह गिलानी ने एक बयान भी इनके खिलाफ दिया था जिससे गुर्जर भड़क गए, बाद में उसे यह कर माफ़ी मांगनी पड़ी कि मीडिया ने उसके बयान को गलत तरीके से पेश किया है. 1990 से आज तक आतंककारियों द्वारा कश्मीर में जितने भी मुसलमानों कि हत्या हुई है उनमे से 85% से ज्यादा कश्मीरी गुर्जर ही थे. ख़ास बात ये है कि  जम्मू और कश्मीर के गुर्जर न तो आज़ादी के पक्ष में है और न ही पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते है, वे भारतीय है और भारत के साथ अमन और चैन से साथ रहने के हामी है.. 

ये बात इसी से साबित होती है कि अलगाववादियों के जितने संघटन आज जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है और पाकिस्तानी हुकुमरानों के इशारे पर भारत ने बदअमनी और आतंक फैला रहे है और जिनके बयान इस बिकाऊ और सेक्युलर(?) मीडिया में छाये रहते है, उन संघटनों में एक भी गुर्जर नेता नहीं है.  उरी, तंगधार और गुरेज जैसे इलाकों के रहने वाले वाले मुसलमान घाटी के मुसलमानों से इतेफाक नहीं रखते, उन्हें भी भारत के साथ रहना ठीक लगता है. यह तो जगजाहिर है कि उत्तरी कश्मीर का लेह लदाख का इलाका बुद्ध धर्मावलम्बियों से भरा हुआ है और जम्मू का इलाका डोगरे ठाकुरों, ब्राहमणों व अन्य जाती के हिन्दुओं से भरा हुआ है. जाहिरान यह सब भी कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते है और भारत के साथ में ही मिलकर रहना चाहते है.. इन लोगों का कहना है कि अगर इमानदारी  से और पूरी मेहनत से सर्वेक्षण किया जाए तो यह साफ़ हो जायेगा कि अलगाववादी मानसिकता के लोग केवल श्रीनगर घाटी में है और मुट्ठीभर है. (और एक हमारा रीढविहीन नेतृत्व और बिकाऊ मीडिया जो पता नहीं किसके इशारे पर ये साबित करने में लगा हुआ है कि जैसे कश्मीर का हर इंसान आज़ादी चाहता है.)   इन लोगों का दावा है कि आंतंकवाद के नाम पर गुंडे और मवालियों के सारे जनता के मन में डर पैदा करके ये लोग पूरी दुनिया के मीडिया में छाये हुए है. सब जगह इनके ही बयान छापे और दिखाए जाते है. इसलिए एक ऐसी तस्वीर सामने आती है मानो पूरा कम्मू-कश्मीर भारत के खिलाफ बगावत करने को तैयार है, और हमारी केन्द्रसशित सरकार वोट बैंक कि गन्दी राजनीती के लिए इसे अपना मूक समर्थन दे रही ताकि बाकी भारत के मुस्लिम युवाओं का ध्यान अपनी और आकर्षित कर सके, फिर कश्मीर के लिए हाजारों भारतियों कि कड़ी मेहनत कि कमाई पर डाका डालकर करोड़ों के पैकेज कश्मीर को दिए जा रहे है ताकि "वोट बैंक" ये समझे कि कांग्रेस सरकार हमारे साथ है
ये लोग (गुर्जर समुदाय) प्रशासनिक भ्रष्टाचार से नाराज है. कश्मीर कि राजनीति में लगातार हावी हो रहे अब्द्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार को भी ये लोग पसंद नहीं करते और स्थानीय राजनीती को बढ़ावा देने के पक्षधर है. पर ये अलगाववादियों और आंतककारियों के साथ कतई नहीं है. गौरतलब है कि ये अलगाववादी नेता, केंद्र सरकार और बिकाऊ मीडिया जिस प्रकार से इन मुद्दों पर हो-हल्ला मचा के रखते है, स्तिथि उसके बिलकुल विपरीत है. इसकी एक बानगी देखिये. कश्मीर के राजौरी क्षेत्र से राजस्थान आकर वहां के दौसा संसदीय क्षेत्र से (यहाँ देखे) स्वतंत्र उमीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले गुर्जर नेता कमर रब्बानी   को इस चुनाव में 3,13,000 वोट मिले वो भी तब जब उसके सामने "सचिन पायलट और नमो नारायण मीणा" जैसे कद्दावर नेता थे.

 रब्बानी का कहना है कि राजस्थान के गुर्जर चाहे हिनू हो या मुसलमान, हमें अपना मानते है. इसिलए मुझ जैसे कश्मीरी को ३ लाख से अधिक वोट दिए.
रब्बानी का यह भी कहना है कि वहां कि सरकार और मीडिया तंत्र कि मिलीभगत ही है कि कश्मीर कि असली तस्वीर दुनिया के सामने नहीं लायी जा रही है.  हम बाकि हिंदुस्तान के साथ है न की घाटी के अलगाववादियों के साथ. रब्बानी ने एक सुझाव यह भी दिया कि अगर केंद्र सरकार कश्मीर में राष्ट्रपति शाशन लागू कर दे और 6 महीने बढ़िया शाशन करने के बाद फिर से चुनाव करवाए तो उसे जमीनी हकीक़त का पता चलेगा. हाँ उसे इस लोभ से बचाना होगा कि वो अपना हाथ नेशनल कांफ्रेंस या पी.डी.पी जैसे किसी भी दल कि पीठ पर न रखे. घाटी के हर इलाके के लोगों को अपनी मर्जी का और अपने इलाके का नेता चुनने कि खुली आज़ादी हो, वोट बेख़ौफ़ डालने का इंतजाम हो तो कश्मीर में एक अलग ही निजाम कायम होगा और उसे वापिस स्वर्ग बनते देर नहीं लगेगी..
पर मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस सरकार और उसके रीढ़विहीन मंत्री ऐसा चाहेंगे, अगर ऐसा हुआ तो बाकी भारत "मासूम मुसलमानों" को ये कैसे लगेगा कि भारत में हमारा शोषण हो रहा है और उनको  बरगलाया नहीं जा सकेगा. ऐसे में कांग्रेस को "वोट बैंक" खोने का डर है वहीँ  कश्मीर कि शांति के साथ ही इस बिकाऊ मीडिया के किले भी ढह जायेंगे, तो कश्मीर कि शांति कि बात कौन करेगा और क्यूँ करेगा . .?????
(और हाँ जाते जाते एक बात और हिन्दुओं के शौर्य और आस्था के प्रतीक "भगवा" को आतंकवाद बताने वाले  हमारे आदरणीय  गृहमंत्री को  इस बात पर बहुत दुःख हो रहा है कि अमेरिका में कुरआन जलाई जाएगी.. इसलिए आजकल हर जगह  आंसू बहाए जा रहे और "वोट बैंक" को  मजबूत किया जा रहा है.)
स्त्रोत:- "पत्रिका" - "श्री विनीत नारायण"

Saturday, July 31, 2010

कांग्रेसी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ते "राजस्थान के गौरवशाली ऐतिहासिक स्तम्भ"- ( Rajasthani Historical monument destroyed by Congress)

राजस्थान का गौरवशाली इतिहास भारत भूमि के लिए अपने अलग ही मायने रखता है.. जिस तरह यहाँ के राजपूत शूरवीरों ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए जो योगदान दिया वो अमिट और अविस्मरनीय है, उसी तरह यहाँ के किले, महल, गढ़, आज भी यहाँ आने वाले सैलानियों के मन में अमिट छाप छोड़कर "गौरवशाली हिन्दुराज्य व्यवस्था" की यादें ताज़ा कर देते है.. लेकिन लगता है अब राजस्थान की गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहर को फिर "इटालियन कांग्रेस" की नज़र लग गयी है और उसका निशाना बन रहे राजस्थान की राजधानी जयपुर के एतिहासिक स्मारक और धरोहर. जयपुर अपनी प्राचीन इमारतों के लिए एक प्रसिद्द शहर है और उन्ही में से एक है 18  वीं शताब्दी में बना हुआ "जलमहल", जो अपनी अदभुत स्थापत्यकला और नक्कासी का बेजोड़ नमूना है और गौरवशाली हिन्दुराज्य कि पहचान है. लेकिन अब ये अब कांग्रेसी भ्रष्टाचार कि भेंट चढ़ गए है.. जलमहल और उसकी झील का बड़ा इलाका शुरू से ही रसूखदार गिध्द्धों के निशाने पे था इसके लिए उन्होंने दुनिया कि सबसे भ्रष्ट पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर लम्बी - चौड़ी  कार्यप्रणाली बनाकर पहले जल महल झील  में शहर कि गंदगी निकासी के दो बड़े नाले जल-महल में मिलाए, फिर जल-महल झील के पुनःउद्धार के नाम से भ्रष्टाचारियों को जल-महल पर कब्ज़ा करने कि मूक सहमति दे दी..
जलमहल झील तब - 2005
कांग्रेसी फर्जी कंपनी जलमहल रिसॉर्ट प्राइवेट लिमिटेड (जेएमआरएल)और सरकार के बीच हुए कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार 432 एकड़ की जमीन 99 साल के पट्टे पर जेएमआरएल को दे दी गई। 2005 में प्रोजेक्ट शुरू हुआ और तय यह हुआ कि जेएमआरएल जलमहल को कम्प्लीट टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में डिवेलप करे और बदले में व्यापारिक लाभ कमाए। इसके लिए 100 एकड़ में रेस्तरां, हैंडीक्राफ्ट बाजार, थिएटर, बजट होटल, कन्वेंशन सेंटर, एक लग्जरी रिसॉर्ट और स्पा जैसी चीजें डिवेलप करने की अनुमति दी गई। 2012-2013 तक कम्प्लीट होने वाले इस प्रोजेक्ट पर 500 करोड़ रुपए की लागत आएगी। लेकिन ये सब बेवकूफ जनता को और ज्यादा बेवकूफ बनाने के लिए प्लान था.!
जलमहल झील अब -2010
अब जेएम्आरएल के द्वारा वहां जिस तरह से तोड़-फोड़ कि जा रही है.. जिस तरह से झील में मिटटी डाली जा रही उसको देखकर मूर्खतम इंसान भी अंदाजा लगा सकता है वास्तव में  वहां  क्या हो रहा है. कांग्रेस का प्लान झील को सुखाकर उसे मिटटी से पाटकर अपने चमचों और हितेषियों को वहां अवैध कब्ज़ा देने का है..
ऐसा नहीं है कि राज्य की पूरी जनता ही "कांग्रेसी" हो गयी है.. भलमानुष
लोगों ने इस घोटाले और धोखाधड़ी के खिलाफ  "हाई-कोर्ट " में अर्जी  लगायी तो  न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम-22 जयपुर शहर ने जलमहल झील लीज में धोखाधड़ी व जलमहल स्मारक में स्थित मजार व मंदिरों में आवाजाही पर पाबन्दी को लेकर दर्ज प्राथमिकी में ब्रह्मपुरी पुलिस की ओर से लगाई अंतिम रिपोर्ट (एफआर) को अस्वीकार कर दिया। उच्चतम न्यायालय व राजस्थान उच्च न्यायालय के कानूनी दृष्टांतों व निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने (जलमहल लीज प्रकरण) के आदेश में कहा कि अनुसंधान अधिकारी मात्र इस आधार पर उचित व सही अनुसंधान करने से नहीं बच सकता कि परिवाद उसके क्षेत्राधिकार का नहीं है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) की भी यही मंशा रही है कि जब अदालत द्वारा परिवाद थाने पर भेजा जाता है तो अनुसंधान अधिकारी का कर्तव्य है कि वह उसमें प्राथमिकी दर्ज कर सही व उचित अनुसंधान कर नतीजा रिपोर्ट पेश करे।

वहीं अदालत ने (जलमहल स्मारक में स्थित धार्मिक स्थलों में पूजा-अर्चना पर रोक प्रकरण) थानाधिकारी अशोक चौहान के सीआरपीसी की धारा 157 (1) बी में पेश परिवाद को अस्वीकार कर दिया। अदालत ने आदेश में कहा कि धारा 156 (3) में परिवाद को अनुसंधान के लिए भेजा है। धारा 157 व अन्य कानूनी प्रावधान इस परिवाद पर लागू होना नहीं पाया जाता है। अदालत ने दोनों प्रकरणों को थानाधिकारी के पास भिजवाकर उचित व सही अनुसंधान के बाद नतीजा पेश करने को कहा.
 यह कहा एफआर में
ब्रह्मपुरी थानाधिकारी ने जलमहल लीज में धोखाधड़ी मामले में दर्ज प्राथमिकी पर यह कहते हुए एफआर लगाई कि परिवादी भगवत गौड़ का परिवाद उनके क्षेत्राधिकार के बाहर का है। इस पर परिवादी के अधिवक्ता अजय कुमार जैन ने सर्वोच्च न्यायालय के रसिक दलपत राम ठक्कर प्रकरण का हवाला देते हुए कहा कि धारा 156 (3) में अनुसंधान के आदेश के बाद कोई भी थानाधिकारी क्षेत्राधिकार के आधार पर अनुसंधान करने से मना नहीं कर सकता है। धार्मिक स्थलों पर पूजा-अर्चना पर रोक संबंधी परिवाद में अनुसंधान के साक्ष्य नहीं होने को कहकर एफआर लगा दी गई, जिस पर परिवादी बाबू खान के अधिवक्ता अश्विनी बोहरा व अवधेश शर्मा ने प्रार्थना-पत्र लगाकर बताया कि धारा 156 (3) में भेजे परिवाद पर अनुसंधान अधिकारी को जांच कर नतीजा पेश करना होता है। अनुसंधान अधिकारी का यह कृत्य कानून के विपरीत है।
बात साफ़ है कि "कर्णाटक" में भ्रष्टाचार का हो-हल्ला मचाने वाले कांग्रेस्सियों को "राजस्थान कांग्रेस" के  महानरेगा, सेज, सोलर पॉवर, दवाई घोटाले क्यूँ नज़र नहीं आते है. ?? या फिर सब "चमचों" को मोहनदास गांधी और गाँधी परिवार के बन्दर बना दिए गया  है.. ??

Saturday, July 10, 2010

"खाप पंचायते" हिन्दू समाज व्यवस्था की "रक्षक या भक्षक"..???

आज कल दम तोड़ते प्रिंट  और  इलेक्ट्रोनिक मीडिया को एक नयी संजीवनी मिली है..और वो संजीवनी है "खाप पंचायत". हर छोटा हो या बड़ा.. बिकाऊ हो या कमाऊ , सभी चैनल पर " खाप पंचायत" को लेकर  "चर्चा में, टक्कर, खुली आवाज़, आमने सामने"  जैसे अनेक प्रोग्राम प्रसारित किये जा रहे है.. सभी चैनल वाले  "कुछ सामाजिक विशेषज्ञों (?) और कुछ चिन्तक शुतुरमुर्गों" को अपने प्रोग्राम में बुलाकर बड़े बड़े दावे किये जा रहे है.. लेकिन मीडिया की इस आपाधापी में असल मुद्दा कही पीछे छुटता जा रहा है.. और वो मुद्दा है...

क्या खाप पंचायते हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के लिए खतरा  है या नहीं...????
इस मुद्दे को समझने के लिए आपको पहले "खाप पंचायतों" के बारे में बता देता हूँ...
खाप या सर्वखाप एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है जो भारत के उत्तर पश्चिमी प्रदेशों यथा राजस्थान, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में अति प्राचीन काल से प्रचलित है। जिसमे "हरियाणा" की खाप पंचायत कड़े फैसले लेने में सबसे आगे है..
 समाज में सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने के लिए मनमर्जी से काम करने वालों अथवा असामाजिक कार्य करने वालों को नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता होती है, यदि ऐसा न किया जावे तो स्थापित मान्यताये, विश्वास, परम्पराए और मर्यादाएं ख़त्म हो जावेंगी और जंगल राज स्थापित हो जायेगा। मनु ने समाज पर नियंत्रण के लिए एक व्यवस्था दी। इस व्यवस्था में परिवार के मुखिया को सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में स्वीकार किया गया है। जिसकी सहायता से प्रबुद्ध व्यक्तियों की एक पंचायत होती थी। जाट समाज में यह न्याय व्यवस्था आज भी प्रचलन में है। इसी अधार पर बाद में ग्राम पंचायत का जन्म हुआ.
जब अनेक गाँव इकट्ठे होकर पारस्परिक लेन-देन का सम्बन्ध बना लेते हैं तथा एक दूसरे के साथ सुख-दुःख में साथ देने लगते हैं तब इन गांवों को मिलकर एक नया समुदाय जन्म लेता है जिसे जाटू भाषा में गावड़ कहा जाता है। यदि कोई मसला गाँव-समाज से न सुलझे तब स्थानीय चौधरी अथवा प्रबुद्ध व्यक्ति गावड़ को इकठ्ठा कर उनके सामने उस मसले को रखा जाता है। प्रचलित भाषा में इसे गावड़ पंचायत कहा जाता है। गावड़ पंचायत में सभी सम्बंधित लोगों से पूछ ताछ कर गहन विचार विमर्श के पश्चात समस्या का हल सुनाया जाता है जिसे सर्वसम्मति से मान लिया जाता है।
जब कोई समस्या जन्म लेती है तो सर्व प्रथम सम्बंधित परिवार ही सुलझाने का प्रयास करता है। यदि परिवार के मुखिया का फैसला नहीं माना जाता है तो इस समस्या को समुदाय और ग्राम समाज की पंचायत में लाया जाता है। दोषी व्यक्ति द्वारा पंचायत फैसला नहीं माने जाने पर ग्राम पंचायत उसका हुक्का-पानी बंद करने, गाँव समाज निकला करने, लेन-देन पर रोक आदि का हुक्म करती है। यदि समस्या गोत्र से जुडी हो तो गोत्र पंचायत होती है जिसके माध्यम से दोषी को घेरा जाता है।...
खाप शब्द का विश्लेषण करें तो हम देखते हैं कि खाप दो शब्दों से मिलकर बना है । ये शब्द हैं 'ख' और 'आप'. ख का अर्थ है आकाश और आप का अर्थ है जल अर्थात ऐसा संगठन जो आकाश की तरह सर्वोपरि हो और पानी की तरह स्वच्छ, निर्मल और सब के लिए उपलब्ध अर्थात न्यायकारी हो. अब खाप एक ऐसा संगठन माना जाता है जिसमें कुछ गाँव शामिल हों, कई गोत्र के लोग शामिल हों या एक ही गोत्र के लोग शामिल हों। इनका एक ही क्षेत्र में होना जरुरी नहीं है। एक खाप के गाँव दूर-दूर भी हो सकते हैं. बड़ी खापों से निकल कर कई छोटी खापों ने भी जन्म लिया है. खाप के गाँव एक खाप से दूसरी खाप में जाने को स्वतंत्र होते हैं. इसी कारण समय के साथ खाप का स्वरुप बदलता रहा है। आज जाटों की करीब 3500  खाप अस्तित्व में हैं..

खाप पंचायतों का पौराणिक सन्दर्भ ..
रामायण काल में इतिहासकार जिसे वानर सेना कहते हैं वह सर्वखाप की पंचायत सेना ही थी जिसका नेतृत्व वीर हनुमान ने किया था और जिसका प्रमुख सलाहकार जामवंत नामक वीर था. राम और लक्ष्मन की व्यथा सुनकर हनुमान और सुग्रीव ने सर्व खाप पंचायत बुलाई थी जिसमें लंका पर चढाई करने का फैसला किया गया. उस सर्व खाप में तत्कालीन भील, कोल, किरात, वानर, रीछ, बल, रघुवंशी, सेन, जटायु आदि विभिन्न जातियों और खापों ने भाग लिया था. वानरों की बहुतायत के कारण यह वानर सेना कहलाई. इस पंचायत की अध्यक्षता महाराजा सुग्रीव ने की थी।
महाभारत काल में सर्वखाप पंचायत ने धर्म का साथ दिया था। महाभारत काल में तत्कालीन पंचायतो या गणों के प्रमुख के पद पर महाराज श्रीकृष्ण थे। श्रीकृष्ण ने कई बार पंचायतें की। युद्ध रोकने के लिए सर्व खाप पंचायत की और से संजय को कौरवों के पास भेजा, स्वयं भी पंचायत फैसले के अनुसार केवल ५ गाँव देने हेतु मनाने के लिए हस्तिनापुर कौरवों के पास गए। शकुनी, कर्ण और दुर्योधन ने पंचायत के फैसले को ताक पर रख कर ऐलान किया कि सुई की नोंक के बराबर भी जगह नहीं दी जायेगी। इसी का अंत हुआ महाभारत युद्ध के रूप में. महाभारत के भयंकर परिणाम निकले। ..

पिछले कुछ समय से मीडिया में खाप पंचायतों के  "ओनर किलिंग" और "तुगुलकी फ़रमान" सामने आ रहे है.. और मीडिया  इस बात को बड़ा चढ़ा कर पेश कर रहा है... इस बारे में अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष ओमप्रकाश मान कहते है कि "हम सब हिन्दू धर्मं में पैदा हुए, हिन्दू समाज व्यवस्था दुनिया के सभी समाजों में श्रेष्ठ है. लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह हमारी सामाजिक व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने कि कोशिस कि जा रही है, उस वजह से हमें कुछ कड़े फैसले लेने पड़ते है.. "ओनर किलिंग" जैसे मसले पर खाप पंचायत के बुजुर्ग कहते है कि "साहब हम भूखे रह कर दुःख भोगकर इतने कष्ट उठाकर अपनी औलाद को पालते है उसे बड़ा करते है.. अब आप ही बताइए कोई अपने कलेजे के टुकडे को कोई बिना वजह क्यूँ मरेगा..??  लेकिन हाँ हमारे समाज के आगे हमारी औलाद का कोई मोल नहीं है.. समाज है तो हम है, देश है, कानून है और कानून कि आंच पर अपनी रोटियां सेकने वाले नेता है.. और अगर कोई इस मसले पर हमें गलत बोलता है वो पहले अपने बच्चों कि आपस में शादी कर के दिखाए.. एयर कंडीशन में बैठ कर बड़ी बड़ी बातें करना आसान  है.. लेकिन यहाँ (गांवों में) अगर कोई लड़का लड़की गलत कदम उठाता है तो उसके परिवार वालों का जीना मुश्किल हो जाता है... हम समाज में रहते है और समाज से हम बाहर नहीं जा सकते.. क्यूंकि हमारी इज्जत ही हमारी सबसे बड़ी दौलत है..  

मैं इसी मसले पर "दूरदर्शन" पर एक प्रोग्राम देख रहा था जिसमे एक आदमी ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को खुली चुनौती देते हुए कहा कि " समाज में हम 5000 सालों से रह रहे है और 50 साल पहले आया कोई भी कानून हमें हमारी सामाजिक व्यवस्था कि हिफाजत करने से नहीं रोक सकता...!!!!!

मतलब साफ़ है.. हिन्दू धर्म को अब फिर से निशाना बनाया जा रहा है, और अब इन "तालिबानियों" ने इस "तुरीन सरकार" कि पहल पर एक नया जेहाद शुरू किया है और वो जेहाद है "लव जेहाद". और इस काम में बिकाऊ मीडिया इसका पूरा पूरा सहयोग भी दे रहा है.. सभी जानते है मुस्लिम समाज कि सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वो अपनी बहनों तक का लिहाज नहीं करते,  और वो ये चाहते है कि "हिन्दू सामाजिक व्यवस्था भी उन्ही कि तरह बेशर्म हो जाये.   क्यूंकि वो अच्छी तरह से जानते है अगर किसी कौम को ख़तम करना है तो सबसे पहले उसके "  गौरवशाली इतिहास और समाज" को खत्म कर दो वो कौम अपने आप ख़त्म हो जायेगी.. और "तुरीन सरकार" कि पहल पर यही सब हो रहा है.. कभी पहले हमारे धार्मिक आस्थाओं को, फिर हमारे गौरवशाली इतिहास को, और अब हमारी सामाजिक व्यवस्था को निशाना बनाया जा रहा है.. .
मैं निजी तौर पर खाप पंचायतों के फैसले को सही मानता हूँ, क्यंकि जब समाज ही नहीं बचेगा तो देश, कौम और कानून क्या खाक बचेगा,.!!!!!!!!!! आप कि इस मुद्दे पर क्या राय है...???
(बेबाक अपनी राय दे.. )


Thursday, July 1, 2010

घुसपैठ का दंश झेलता भारत (Pak Militiant Infiltration In India)

जैसा कि "सुरेशजी" से वादा कर चूका था कि भारत में राजस्थान के रास्ते होने वाली "घुसपैठ" के बारे में एक लेख लिखूंगा...  इस लेख के लिए मैं खुद जोधपुर जाकर वहां रहने वाले "भिखारियों (?) और वहां कि बी एस ऍफ़ "बोर्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स" के आला अधिकारीयों से भी मिल चूका हूँ,,

(प्रस्तुत है आपके लिए "पाकिस्तानी घुसपैठ" के भयावह हालात)

- 1947 में जब "ब्रिटिश भारत" का विभाजन करके पाकिस्तान का निर्माण किया गया था तब करीब 1.45 करोड़ लोगो ने हिंसा के डर से बहुमत संप्रदाय के देश में शरण ली और  तभी से पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त से "घुसपैठ" करने का और करने वालों का कारोबार शुरू हो चूका था, इतिहास गवाह है कि इस हिंसा में करीब 5 लाख लोगों कि हत्या कि गयी..  विभाजन के बाद दोनों नए देशों के बीच विशाल जन स्थान्नातरण हुआ,, "पाकिस्तान में बहुत से हिन्दुओं और सिखों को जबरन अपने घर से निकाल कर बाहर कर दिया गया..उनके घरों को आग लगा दी गयी और उनका सामान लूट लिया गया..
लेकिन "सनकी मोहनदास गाँधी" कि दोगली राजनीती के चलते भारत में रह रहे मुसलमानों पर ये दवाब नहीं डाला गया कि वो भारत को छोड़कर "पाकिस्तान" जाये.. हाँ अगर कोई "मुसलमान भाई" पाकिस्तान जाना चाहता है तो जा सकता अन्यथा भारत में भी रह सकता है..
भारत के विभाजन के बाद शुरू में उन मुसलमानों ने अवैध रूप से पाकिस्तान जाना शुरू कर दिया जो विभाजन के समय पाकिस्तान नहीं जा सके थे, या जो शरणार्थी बनकर भारत में रह गए थे, और इस काम में उन लोगो का साथ दिया राजस्थान कि पाकिस्तान से लगती सीमा पर बसे गाँवों के लोगो ने. जिन्होंने पैसे लेकर पाकिस्तान कि बोर्डर पार करवाना शुरू कर दिया था, वो लोग इस बात को नहीं जानते थे कि "उनके द्वारा चलाई गयी ये उलटी रीत एक दिन भारत के सामने बहुत बड़ी गंभीर समस्या बनकर खड़ी होगी..

आंकड़े बताते है कि हर साल गर्मी के मौसम में करीब 2000 से 2500  पाकिस्तानी लोग "राजस्थान कि रुकांवाला और भुठेवाला" सीमा से अवैध रूप से सीमा पर कर के आ जाते है..  इस घुसपैठ सेना के अधिकारी कहते है "राजस्थान एक विषम परिस्थियों से भरा हुआ क्षेत्र है., जहाँ दूर दूर तक पानी का नामोनिशान नहीं है., गर्मी में जहाँ का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है.. जहा के रेतीले टीले दिन रात अपना स्थान बदलते रहते है;; वहां पर सेना कि लाख  कोशिशों के बाद भी घुसपैठ हो ही जाती है"
सेना के अधिकारीयों का कहना  भी सही है, क्यूंकि इन परिस्थितियों से निपटने के लिए उनके पास प्रयाप्त साधन नहीं है.."(यहाँ गौर फरमाने के लायक बात ये है कि जो सेना के जवान दिन-रात देश कि सेवा में लगे रहते है उनके पास पिने के लायक पानी नहीं है.. भयानक गर्मी से निपटने के लिए कोई इन्तेजाम नहीं है.. और हमारे देश के हरामी नेता जो पूरे देश को नोच नोच कर खा रहे है वो बिना एयर कंडीसन के रह नहीं सकते,  जिन्हें  अपना पिछवाडा धोने के लिए मिनरल वाटर चाहिए..)". 
ये घुसपैठ कितनी खतरनाक है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि भारत में हुए अब तक बम ब्लास्ट और जासूसी के केस में जितने लोग पकडे गए है उनमे से 70 % लोग राजस्थान कि सीमा से भारत आये थे.. राजस्थान सरकार कहने को तो घुसपैठियों को ढूंडने का दिखावा करती है और सालाना इसके 10 करोड़ रुपये भी खर्च किये जा रहे है लेकिन असलियत क्या है ये आप खुद "जोधपुर और जैसलमेर" के रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों का नजारा देख कर लगा सकते है. जहाँ करीब हजारों "पाकिस्तानी भिखारियों के रूप में रह रहे है और सीमा पर बैठे अपने आकाओं के हुक्म का इन्तेजार कर रहे है.
पता नहीं ये लोग कब क्या करेंगे..? कितने मासूमों कि जान लेंगे..?? कितने घरों का चिराग बुझाएंगे..?? और हमला होने के बाद हमारा हमेशा सोते रहने वाला गृहमंत्रालय सवेदना व्यक्त करेगा और वही पुराना घिसा पीटा आतंकवाद विरोधी बयान देकर सो जायेगा,, लेकिन इसकी असली कीमत कौन चुकाएगा ,,,,,??????
  "राजस्थान सरकार के सरकारी महकमे के अधिकारीयों कि इच्छा शक्ति का नमूना तो देखिये, जब उनसे इस बारे में बात कि जाती है तो वो बुरा सा मुंह बनाकर बोलते है " इन भिखारियों के कौन मुंह लगे.(?) (मतलब हमारे आलाकमान अधिकारीयों के लिए इस देश कि अखंडता और सुरक्षा बनाये रखने के लिए देश में घुस कर बैठे इन देशद्रोहियों से बात करना भी गवारा नहीं.)
कांग्रेस सरकार का एक सिद्दांत बन चूका है कि आप कोई भी मुसलमान हो "चाहे पाकिस्तानी हो या अफगानी हो" कांग्रेस का हाथ आपके साथ हमेशा रहेगा.. क्यूँ कि आपके अल्लाह में ही कांग्रेस वोट बैंक रहता है..
सेना की उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल ने एक बयान में कहा है कि पाकिस्तान की ओर से आतंकियों को देश में धकेलने में कोई कमी नहीं आई है। 600 से 800 आतंकी इस समय घुसपैठ की फिराक में हैं।
हमारे "तुरीन और सेक्युलर नेता" एक ख़ास वोट बैंक को खुश करने के लिए हमेशा पाकिस्तान के साथ दोस्ती का ढोंग करते है और आतंकवादी मुसलमानों को "भटका हुआ और मासूम" बताते है. वो ये नहीं जानते है कि घुसपैठ, आतंकवाद जैसे संवेदनशील मसलों पर चुप बैठे रहना शांतिप्रियता नहीं नंपुसकता है। भारत का नौजवान तो आज भी देश के लिए मरने-मारने को तैयार है लेकिन “ तुरीन सरकार का भ्रमित व पंगु नेतृत्व” जिसका हमेशा ध्यान सत्ता पर कब्जा बनाए रखने में ही रहता है, उसके हाथ बांधे रखता है।
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विदेशी घुसपैठ की समस्या को विश्व के अन्य देश कैसे हल करते हैं इसका यदि अध्ययन करें तो पायेंगे कि अपने देश की सीमा में अनधिकृत प्रवेश पर अफगानिस्तान उन्हें जान से मार देता है, मैक्सिको, क्यूबा, वेनेंज्वेला, सउदी अरब व इरान अजीवन जेल में डाल देते हैं, उत्तारी कोरिया बारह साल का सश्रम कारावास देता है तो चीन उसे कभी दोबारा नहीं देखता है। यदि इन परिस्थितियों को भारतीय संदर्भ में देखें तो "तुरीन और सेक्युलर सरकारें" अपने इस आरक्षित वोट बैंक के लिए राशनकार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाईसेंस, वोटर आईडी कार्ड, क्रेडिट कार्ड, खाद्य सब्सिडी, हज सब्सिडी, नौकरी में आरक्षण आदि न जाने क्या क्या थाली में परोस कर देती हैं। जो भारत में रहने वाले गरीब और "लतियाते" हिन्दुओं के पास भी नहीं है.. और अब, जनसंख्या रजिस्टर में नाम दर्ज कर विशेष पहचान पत्र दिये जाने की तैयारियां पीछे के दरवाजे से चल रही हैं। इसके बाद यह सभी देश के दुश्मन भारतीय नागरिक बनकर देश के किसी भी भाग में कभी भी और कुछ भी करने को स्वतंत्र होंगे। इस प्रकार हम मूक दर्शक बन एक गम्भीर राष्ट्रीय खतरे को आमंत्रण देंगे। काश! देश के कर्णधार समय रहते इस खतरे को समझ पाएं।
लेकिन मुझे नहीं लगता कि "अपने वोट बैंक" को नाराज कर ये "तुरीन और सेक्युलर सरकार " इस देश कि सेना और देश कि सीमा के हिफाजत के लिए कोई कदम उठाएगी..???

आपको क्या लगता है कि हमारा देश अब सुरक्षित है..??? (अपनी राय जरूर दे)

Thursday, June 24, 2010

कांग्रेस की (अ)निति:- जो हिंदुत्व की बात करेगा वो (भगवा) आतंकवादी. Hindutva Means Terrorisam..(for Congress)..???

जैसा की आप सब महानुभाव जानते है कि  पिछले 5 साल से हिन्दू आतंकवाद का नाम आपने इस "बिकाऊ मीडिया" के जरिये बार बार सुना होगा.. चाहे साध्वी प्रज्ञा हो या प्रमोद मुतालिक हो या चाहे विहिप और बजरंग दल हो. सबको एक "आतंकवादी संघठन" घोषित करने के खातिर  "तथाकथित तुरीन चमचो और सेकुलर नागों" ने एक खास वोट बैंक को खुश करने के लिए "भूख हड़ताल और आमरण अनशन" जैसे हजारों नाटक किये है...   अब एक नया मुद्दा भोली भाली (बेवकूफ) जनता के सामने आया है कि भाजपा सिर्फ कट्टर हिन्दुओं को ही चुनाव का टिकैट देती है,, ये मुद्दा कुछ सेकुलर नेताओं जरा बार-बार उठाया जा रहा है (ताकि तैमुर के वंशजों" के वोट सलामत रहे) और उसमे सबसे पहले नाम उठाया जा रहा है वो हैं " गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ". .

सेकुलर नेताओं और कठमुल्लों के निशाने पे रहने वाले "योगी आदित्यनाथ " को जब भाजपा ने चुनाव का टिकट दिया तो मानो इन "तुरीन चमचों के कलेजे पर हजारों जहरीले सांप लोट गए" क्यूंकि ये मुद्दा तथाकथित "सेकुलर नेता और तथाकथित भाजपा भक्तों को नागवार गुजरा कि हिन्दू युवा वाहिनी और हिन्दू महासभा के बैनर तले हिन्दू धर्मं का प्रचार करने वाले योगी को सांसद का टिकट दे दिया गया.  मैं इस चर्चा को जरी रखते हुए आपको सबसे पहले योगी आदित्यनाथ  का परिचय करावा देना चाहता हूँ.
"योगी आदित्यनाथ" गोरखनाथ मठ के उत्तराधिकारी है और हिन्दू युवा वाहिनी के संरक्षक हैं. इसके अलावा हिन्दू जागरण मंच, केसरिया सेना, केसरिया वाहिनी, कृष्ण सेना आदि अनेक ऐसे संगठन हैं जो उनके अग्रिम संगठन के रूप में काम करते हैं. और भी कई संगठन हैं जो समाज के अलग-अलग वर्गों को संगठित करने के क्रम में तैयार किये गए हैं, जैसे फुटपाथ पर गुजारा करने वालों को ' राम प्रकोष्ठ' के अंतर्गत और जो लकड़ी या बांस का काम करते हैं उन्हें 'बांसफोड़ हिन्दू मंच' के बैनर तले संगठित किया जा रहा है और ये बात "सेकुलर चमचों" को कभी भी मंजूर नहीं कि हिन्दुओं का भला हो और वो संघटित हो जाये क्यूंकि इनको तो एक खास वोट बैंक में ही अल्लाह , परमात्मा, और ईसाह मसीह निवास करते है..
"योगी बाबा आदित्यनाथ कि असली पूँजी और ताकत है "गोरखनाथ मठ" और वही उनका आश्रय स्थल है..जहाँ वे लोगो को धर्म और सदमार्ग पर चलने और "सर्व धर्मं संभाव" के उपदेश देते है लेकिन वो ये नहीं जानते कि कुछ खास "मुल्लों" और "तुरीन चमचों" ने उनके खिलाफ एक योजनाबद्ध तरीके से उनको  "बदनाम" करने कि मुहीम छेड़ रखी है और इसके लिए बाकायदा "बिकाऊ तुरीन पत्रकारों" के द्वारा पेड आर्टिकल लिखाये जा रहे है. चूँकि उन्होंने ये हिन्दुओं को संघटित करने कि प्रेरणा "RSS" और "विश्व हिन्दू परिषद्" से ली है इसके लिए बाकायदा बदनाम भी किया जा रहा है, (मतलब ये कि जो हिन्दुओं और हिंदुत्व कि बात करेगा वही इस कलयुगी सरकार के लिए "आतंकवादी और अलगाववादी" होगा)  योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक प्रभाव और अंदाज़ देखकर इन "तुरीन चमचों" कि पैंट गीली और ढीली हो रही है और उनके पिछवाड़े में इस तरह खलबली मची हुई है  कि उन्होंने इस प्रभाव कि तुलना  बाल ठाकरे, शिवसेना और जर्मनी के तानाशाह हिटलर कि "स्टोर्म ट्रुपर" से करनी शुरू कर दी है.  योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश के हजारों बेरोजगार युवाओं को शंघटित करके उन्हें हिन्दू धर्मं के प्रचार प्रसार में लगाया और सदमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया. चूँकि उनके पास अब युवा शक्ति के साथ हिन्दू धर्मं का एजेंडा भी है इसके लिए उनका " सर्व धर्मं सम्भाव" मिशन धीरे धीरे ही सही लेकिन फल-फूल रहा है, और ये बात "सेकुलर चमचों" के लिए किसी भी वज्रपात से कम नहीं जो दिन रात हिन्दुओं को बरगलाकर और बेरोजगार हिन्दू युवाओं का धर्मं परिवर्तन करवाकर ईसाइयत को बढ़ावा देने वाली "तुरीन देवी (सोनिया) " कि नज़रों में अपनी राजनितिक गोटियाँ फिट करने में लगे है..उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि पूर्वांचल में गरीब जनता को बरगलाकर सैंकड़ों सालों से चली आ रही उनकी राजनितिक साख को बट्टा लग जायेगा और वो जमीन में दफ़न हो जाएगी.
जाहिर है बाबा योगीनाथ  कि राजनितिक और वैचारिक साख इतनी जयादा बढ़ रही है कि "तुरीन चमचों" नींद हरम हो रही है,, ध्यान देने योग्य बात ये है कि नाथ संप्रदाय सामाजिक रूप से प्रगतिशील और समतावादी तथा धार्मिक रूप से समरस संप्रदाय है. एक ओर जहाँ वह वर्ण व्यवस्था विरोधी है वहीं दूसरी ओर वह सभी धर्मों के मानने वालों के लिए समान रूप से खुला हुआ है .अपने इसी स्वाभाव के कारण नाथ संप्रदाय निचली जातियों में अधिक लोकप्रिय है, नाथ संप्रदाय सामाजिक रूप से प्रगतिशील और समतावादी तथा धार्मिक रूप से समरस संप्रदाय था. एक ओर जहाँ वह वर्ण व्यवस्था विरोधी था वहीं दूसरी ओर वह सभी धर्मों के मानने वालों के लिए समान रूप से खुला था.अपने इसी स्वाभाव के कारण नाथ संप्रदाय निचली जातियों में अधिक लोकप्रिय है.
गोरखपुर एक शहर है जिसके मुहल्लों और बाज़ारों के नाम मुस्लिम्करण किया जा रहा है, माया बाज़ार का मियां बाजार, आर्यनगर का अलीनगर, इत्यादि, मुसलमानों ने इस बदलाव को फतवा जरी कर के सहमति दे दी लेकिन अब जाग्रत हो चुके हिन्दुओं को ये कभी भी मंजूर नहीं है और यही वैचारिक टकराव आने वाले दिनों में "सांप्रदायिक हिंसा का कारन बनेगा" (जैसा कि "सेकुलर चमचे चाहते है).  
लेकिन असल मुद्दे कि बात ये है कि हिन्दू कभी जागेगा क्या या फिर यूँही अपना विनाश होते देखता रहेगा..?? 

Friday, June 18, 2010

मीडिया की गलाकाट प्रतिश्प्रधा ..एक उदहारण.और कुछ जव्व्लंत मुद्दे. (Media Is Not Botherd for His News..)

मीडिया  अपनी टीआरपी की हवस में किसी भी हद तक जा सकता है। खासतौर से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने तो जैसे सारी नैतिकता ही खत्म कर दी है उसको कोई मतलब नहीं है की इस देश और देश की जनता के साथ क्या हो रहा है,, आज के युग में  जब " लोकतंत्र शब्द " जब एक गाली बन चूका है, तो लोकतंत्र का चौथा स्तम्ब कहलाये जाने "बिकाऊ" मीडिया की कोई प्रासंगिकता नहीं रह  गयी है..
26 तारीख को मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ हुआ तो पूरे देश में अफरा तफरी का माहौल था, लोग समझ नहीं प् रहे थे की क्या हो रहा है.. जिसने भी ये सुना की देश पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ "वो स्तब्ध था". प्रिंट इलेक्ट्रोनिक मीडिया के तमाम कर्मचारी कुछ देर में ही होटल ताज और नरीमन हाउस के पास अपने ताम झाम के साथ पहुँच गए. और जैसा की होता आ रहा है, हर खबर को एक्सक्लूसिव बता बता कर दिखा रहे थे, मतलब साफ़ है की ढहते किलों के बीच इलेक्ट्रानिक मीडिया को नया मंत्र मिल गया था . वह मंत्र था - आतंकवाद. आतंकवाद से इस लड़ाई में मीडिया सीधे जनता के साथ मिलकर मोर्चेबंदी कर रहा था.
वैश्विक मंदी के इस दौर में आतंकवाद ही एक ऐसा मंत्र था  जो ज्यादा देर तक दर्शकों को बुद्धूबक्से से जोड़कर रख सकता था. इलेक्ट्रानिक मीडिया इस मौके को किसी कीमत पर नहीं चूकना चाहता था. वही ताज होटल और नरीमन हाउस में अपनी जान की बाज़ी लगाकर लोहा लेते "राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड" (NSG) के अधिकारी और खुद मेजर दत्ता मीडिया से बार बार आग्रह कर रहे थे, की इस बात की पूरी संभावना है की आतंकवादी होटल में लगे टीवी सेट्स से हमारी हमारी कदम कदम की रणनीति की जानकारी ले रहे है,,, और ये बाद में साबित भी हो गयी की न्यूज़ अपडेट पाकर की आतंकवादी अपनी कदम कदम की रणनीति बना रहे थे.. पर उस समय मीडिया को सबसे जयादा अपनी टी आर पी की फिकर ज्यादा थी और कोई चैनल इससे चूकना नहीं चाहता था.

अगर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मीडिया इतना ही ईमानदार होता तो बीच में विज्ञापनों का ब्रेक न चलाता. अगर आतंकवाद के खिलाफ  मीडिया इतना ही ईमानदार होता तो चिल्ला-चिल्लाकर अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करने की दुहाई न देता. अगर असल मुद्दा आतंकवाद है तो फिर चैनलों के ब्राण्डों पर असली पत्रकारिता की अलाप क्यों लगायी जाती है? क्यों टीवी के नौसिखिए लड़के/लड़कियां हमेशा अपने ब्राण्ड द्वारा ही सच्ची पत्रकारिता करने की दुहाई देते रहते हैं? क्यों टीवी वाले यह बताते हैं कि उन्हें इस मुद्दे पर इतने एसएमएस मिले हैं जबकि एक एसएमएस भेजने के लिए उपभोक्ता की जेब से जो पैसा निकलता है उसका एक हिस्सा टीवी चैनलों को भी पहुंचता है. इन सारे सवालों का जवाब यही है कि आखिरकार टीवी न्यूज बहुत संवेदनशाली धंधा है. और जिन पर इस बार हमला हुआ है वे भी धंधेवाले लोग हैं. एक धंधेबाज दूसरे धंधेबाज के लिए गला फाड़कर नहीं चिल्लाएगा तो क्या करेगा? आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के उनके मंसूबे तब दगा देने लगते हैं जब पता चलता है कि जिस चैनल की टीआरपी बढ़ी उसने अपनी विज्ञापन दर बढ़ा दी. है कोई चैनलवाला जो इस बात से इंकार कर दे?

मीडिया ने कुछ ऐसे मुद्दों को इतना ज्यादा बढावा दिया जितना की वो नहीं थे..जैसे आरुषि हत्याकाण्ड क्या हुआ लगता है कोई बहुत बड़ा विस्फोट हो गया। अगर इस प्रकार की कोई घटना किसी निम्न तबके की होती तो शायद खबर भी नहीं छपती। माना हत्याकाण्ड काफी गंभीर है लेकिन एक ही बात को लेकर सभी चैनल हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं जैसे उनको कोई बहुत बड़ा सुराग मिल गया है या कोई खजाना। मैंने काफी सारे केस देखें हैं जिन्हें आज तक किसी भी चैनल ने हाथ धोकर पीछे नहीं पड़े - लेकिन इस आरुषि हत्याकाण्ड को लेकर चैनल वालों ने तो कमाल ही कर दिया। मेरे हिसाब से एक बात को अगर दिखाया जाए तो कम से कम शब्द और साफ तरीके से दिखाया जाए न कि उसे लगातार दिखाना। किसी को ये विचार गलत लगे तो माफ करना -लेकिन इस भारत में और भी आरुषि हत्याकाण्ड है जिनका कोई जिक्र नहीं किया या जिनको मीडिया ने दफना दिया क्यूंकि कोई बड़ा नेता या बड़ा नौकरशाह इसमें शामिल था..
आजकल मीडिया का स्तर इतना ज्यादा गिर चूका है की कोई भी नेता और नौकरशाह कभी भी अपने लिए पैड आर्टिकल छापवा सकते है फिर चाहे उसका असर जो भी हो..  हम सब जानते है मीडिया की कमान आजकल सता के गलियारों में  है लेकिन इतना भी क्या गिरना की उठने लायक ही नहीं रहो.. नवभारत , एन डी टीवी, आजतक, जैसे कुछ चेन्नल है जो सिर्फ "तुरीन सरकार" के लिए काम करते है, ये एक लाबी है जिसका काम यही है की "सेकुलर और मुल्ला" बिरादरी को कैसे खुश रखा जाये,, चाहे इसके लिए इन्हें शांतिपसंद हिन्दुओं को चाहे "आतंकवादी" ही क्यूँ न बताना पड़े.. चाहे " भगत सिंह, वीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस और बिस्मिलाह " जैसे देशभक्तों को आतंकवादी बताना पड़े. पर "तुरीन सरकार" को खुश रखने के लिए उसके काले कारनामो पर  तेल लगाना जैसे इसकी आदत बन गयी है.. आज जरूरत है मीडिया को अपनी साख बचाकर अपने मूल सिद्दांत वापस अपनी कार्यशैली में लाने की.
मेरे कुछ दोस्त बात करते है की बढ़ाते इन्टरनेट की चलन के 5 साल में मीडिया खुद अपनी मौत मरेगा,, भगवान् करे ऐसा ही हो. ताकि हम खुद अपने स्तर पर भले बुरे की पहचान कर सके. ताकि फिर  कोई "मैकाले" हमें फिर से गुलामी के तरीके और  दास्ताँ न पढ़ाने आये..
(नीचे एक सम्मानित अखबार भास्कर की फोटो दे रहा हूँ, जिसमे बंगलोरे को आँध्रप्रदेश की राजधानी बताया गया है.. क्या कर्नाटक भाजपा शाशित है सिर्फ इसलिए या आन्ध्रप्रदेश "कांग्रेस" शाशित है इसलिए.   बात जो भी हो मीडिया को अपने काम की जिम्मेदारी लेनी होगी..)


Tuesday, June 15, 2010

हिन्दुओ पर अत्याचार और मुसलमानों पर इनायत ( कांग्रेस की दोगली निति ) और बिकाऊ मीडिया - Please Take this Issue in HIGH PRORITY.

जैसा की सब जानते "माइनो" (तुरीन) सरकार ने हमेशा हिन्दुओं के साथ दोहरा मापदंड अपनाया है. और कुछ तथाकतिथ हिंदूवादी नेताओ ने इस काम में कांग्रेस का जी भर के लेट लेट के साथ दिया है.
आपका ध्यान कुछ मुद्दों पर आकर्षित करना चाहूँगा,
1 ) . अगर सचिन तेंदुलकर भारतीय नक़्शे के आकर का बना (साइज़ एकदम अलग) का केक अपने जन्मदिन पर काटते है तो तथाकतिथ "तुरीन चमचे" उसके खिलाफ जंग का एलान कर देते है, उसे देशद्रोही कहकर उसके पोस्टर जलाते है. उसे भारतीय टीम से बहार रखने की मांग उठाते है.

2 ). अगर मन्दिरा बेदी एक समारोह में "तिरंगे" की आकृति बनी हुई साडी पहन लेती है तो न सिर्फ हिन्दुस्थान के "तुरीन ठेकेदार" बल्कि पूरी दुनियाँ के "हिन्दुओं के रक्षक".(?) खूब हो हल्ला मचाते है और मन्दिरा बेदी के पुतले जलाकर विरोध प्रकट करते है.

3 ). 15 अगस्त को बैंगलोर और कलकत्ता में 2 पुलिस वालों के हाथ से गलती से "तिरंगा' जमीनपर गिर जाता है तो "तुरीन सरकार" और "खुनी मार्क्स" उन पुलिस वालो तत्काल प्रभाव से निलाबित कर देते है.
 
          ये बड़ा मुद्दा न हो लेकिन जरा निचे "तुरीन सरकार" की हिन्दुओं के साथ दोहरी मानसिकता को भी देख लीजिये.

1 ) पवित्र अमरनाथ यात्रा के दोरान हाथ में तिरंगा लिए हुए शांति से "भारत माता की जय" नारे लगते श्रधालुओं पर जम्मू कश्मीर के पुलिस कामिसनर के आदेश पर खुले आम गोलियां दागी जाती है यह कहकर की " हिन्दू धार्मिक उन्माद फैला रहा है" ( क्या अपने देश का तिरंगा हाथ में लेकर देश के नारे लगाना गुनाह है..?? शायद कश्मीर में हो..!!)

2 ) कश्मीर में कुछ "भारतीय नागरिक" अपनी मांगो को लेकर दिन दहाड़े "लाल चौक" पर तिरंगे को जलाते है .. हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते है तो वही पुलिस इन "शांति दूतों" के पास खड़े होकर इनका मूक समर्थन करती है.. (क्या ये दोगलापन नहीं है .??)

3 ).  14 अगस्त (पाकिस्तानी स्वतंत्रता) दिवस पर यही लोग पाकिस्तानी झंडा लहराते है , यहाँ तक की सरकारी कार्यालयों पर भी पाकिस्तानी झंडा कश्मीर में फहराया जाता है... और 15 अगस्त को ये लोग "तिरंगे" को जलाते है..  तो वो देश भक्त हो गए..????

चलो कुछ ऐसा दिखाता हूँ की शायद आपके खून में उबाल आ जाये.. ???
१.

( लाल चौक पर "कश्मीरी भाई " (मुसलमान भाई) " तिरंगा जलाते हुए. सिर्फ अपनी कुछ मांगो को लेकर.)

२.



 ( तिरंगे को जलाकर पाकिस्तान के झंडे को "पाकिस्तानी स्वतंत्रता " दिवस पर लहराया जाता है.. क्यूँ भारत की सरकार सब (नेता अधिरकारी)  छक्के है.)

३.  .



अब आप इसे क्या कहेंगे ..??? क्या देश हिन्दुओं का है..?? क्या ये "तुरीन सरकार" कभी भारत को अपना समझ पायेगी..??
क्या इस "तुरीन सरकार" और उसके "तथाकथित सेकुलर चमचों" ने भारत को खंडित करने के मंसूबे नहीं पल रखे है ..??
क्या ये बिकाऊ मीडिया अपनी भूमिका कभी देश हित में निभाएगा. .?? या फिर "तुरीन परिवार" की चमचागिरी में ही अपना मोक्ष समझेगा..??

चलो कुछ बिकाऊ मीडिया के कारनामे देख लेते है, जो देश की भोली-भली जनता का ध्यान कैसे असली मुद्दों से हटा देती है... ताकि उसकी "तुरीन माता" पर कोई आंच न आये...?

1 ). स्टार न्यूज़ की ब्रेअकिंग न्यूज़ :-  कमिश्नर का कुत्ता लापता ..


2 ). आज तक (सबसे तेज) का दम भरने वाले बिकाऊ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़:- (बिल्ली छाजे पर चढ़ी)


(अब ऊपर का सब तमाशा देख कर किसी के मन में ये सवाल नहीं रहना चाहिए की हिन्दू धर्म पर संकट क्यूँ है या इस देश का मीडिया कितना बिकाऊ है..?? )
एक बात तो तय है की इस "तुरीन सरकार" और उसके सेकुलर चमचो ने इस देश को बांटने का पक्का इरादा कर लिया है..
लेकिन सबसे बड़ा सवाल की क्या ये सब देखकर हिन्दू कभी जागेगा ..??? या फिर अपनी आँखों से अपना विनाश होते देखेगा...???
(आप अपनी राय दे.)

क्या हिन्दू आतंकवाद नाम की कोई चीज़ है.. (Is Hindu AATANKWAD working in INDIA..?)

पिछले कुछ समय से "हिन्दू आतंकवाद" की चिल्ल-पों मचाकर तथाकथित "सेकुलरों & माइनो" ने हिन्दू धर्म को खूब बदनाम किया है...?? साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद "हिन्दू आतंकवाद" या हिन्दुओं को आतंकी घोषित करने वालों की तो मानो चांदी हो गयी है.
हिन्दू दर्शन के हर व्यवहार में आध्यात्म कूट-कूट कर निहित है. अगर आप भारत के गांवों में घूमें तो आप जितने भी गांवों में जाएंगे वहां आपको आपके रूप में ही स्वीकार कर िलया जाएगा. आप किस रंग के हैं, कौन सी भाषा बोलते हैं या फिर आपका पहनावा उनके लिए किसी प्रकार की बाधा नहीं बनता. आप ईसाई हैं, मुसलमान हैं, जैन हैं, अरब हैं, फ्रेच हैं या चीनी हैं, वे आपको उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं. आपके ऊपर इस बात का कोई दबाव नहीं होता कि आप अपनी पहचान बदलें. यह भारत ही है जहां मुसलमान सिर्फ मुसलमान होता है न कि भारतीय मुसलमान या फिर ईसाई सिर्फ ईसाई होता है न कि भारतीय ईसाई. जैसा कि दुनिया के दूसरे देशों में होता है कि यह सऊदी मुसलमान है या फिर यह फ्रेंच ईसाई है. यह भारत ही है जहां हिन्दुओं में आम धारणा है कि परमात्मा विभिन्न रूपों में विभिन्न नाम धारण करके अपने आप को अभिव्यक्त करता है. सभी धर्मग्रन्थ उसी एक सत्य को उद्घाटित करते हैं. अपने ३५०० साल के इतिहास में हिन्दू कभी आक्रमणकारी नहीं रहे हैं, न ही उन्होंने अपनी मान्यताओं को दूसरे पर थोपने की कभी कोशिश की है.
जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया तो वो सिर्फ एक हिन्दुओं के धैर्य की परीक्षा थी. गौर करने लायक बात ये की "बाबरी विध्वंस" में एक भी मुस्लमान की हत्या नहीं हुई.लेकिन उसके बाद मुंबई में जो बम काण्ड हुए, उसमे सैंकड़ो हिन्दू मरे गए उसके बारे में आज तक कोई "सेकुलर या कांग्रेसी" बात नहीं करता है. ये तथाकथित "सेकुलर और कठमुल्ले" बार बार बाबरी मस्जिद के घाव को कुरेदकर उसमे निकलने वाले खून को चाटते रहते है. अनपढ़ मुसलमानों को हमेशा से बरगलाते रहते है. उन्हें खौफ दिखाकर या उनको बरगलाकर उनमे उन्माद भर देते है.. क्यूंकि "लाशो पे राजनीती इनका पहली बार अरब के आक्रमणकारियों के भारत पर हमले के साथ ही हिन्दू लगातार मुस्लिम आक्रमणकारियों के निशाने पर रहे हैं. १३९९ में तैमूर ने एक ही दिन में एक लाख हिन्दुओं का कत्ल कर दिया था. इसी तरह पुर्तगाली मिशनरियों ने गोआ के बहुत सारे ब्राह्मणों को सलीब पर टांग दिया था. तब से हिन्दुओं पर धार्मिक आधार पर जो हमला शुरू हुआ वह आज तक जारी है. कश्मीर में १९०० में दस लाख हिन्दू थे. आज दस हजार भी नहीं बचे है. बाकी हिन्दुओं ने कश्मीर क्यों छोड़ दिया? किन लोगों ने उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया? अभी हाल की घटना है कि अपने पवित्रम तीर्थ तक पहुंचने के लिए हिन्दुओं को थोड़ी सी जमीन के लिए लंबे समय तक आंदोलन चलाना पड़ा, जबकि इसी देश में मुसलमानों को हज के नाम पर भारी सब्सिडी दी जाती है. एक ८४ साल के वृद्ध संन्यासी की हत्या कर दी जाती है जिसपर tathakathit Bilawoo भारतीय मीडिया कुछ नहीं बोलता लेकिन उसकी प्रतिक्रिया में जो कुछ हुआ उसको शर्मनाक घोषित करने लगता है.  

फ्रांस स्थित (Review of India)के मुख्य संपादक फ्रैंको'स गोतिये के शब्दों में:-
कई बार मुझे लगता है कि यह तो अति हो रही है. दशकों, शताब्दियों तक लगातार मार खाते और बूचड़खाने की तरह मरते-कटते हिन्दू समाज को लतियाने की परंपरा सी कायम हो गयी है. क्या किसी धर्म विशेष, जो कि इतना सहिष्णु और आध्यात्मिक रहा हो इतना दबाया या सताया जा सकता है? हाल की घटनाएं इस बात की गवाह है कि इसी हिन्दू समाज से एक वर्ग ऐसा पैदा हो रहा है जो हमलावरों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहा है. गुजरात, कंधमाल, मंगलौर और मालेगांव सब जगह यह दिखाई पड़ रहा है. हो सकता है आनेवाले वक्त में इस सूची में कोई नाम और जुड़ जाए. इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर व्यापक हिन्दू समाज ने अपने स्तर पर आतंकी घटनाओं और हमलों के जवाब देने शुरू कर दिये तो क्या होगा? आज दुनिया में करीब एक अरब हिन्दू हैं. यानी, हर छठा इंसान हिन्दू धर्म को माननेवाला है. फिर भी सबसे शांत और संयत समाज अगर आपको कहीं दिखाई देता है तो वह हिन्दू समाज ही है. ऐसे हिन्दू समाज को आतंकवादी ठहराकर हम क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या आतंकवादी शब्द भी हिन्दू समाज के साथ सही बैठता है? मेरे विचार में यह अतिवाद है.

आप इस बारे में क्या कहेंगे.
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