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Sunday, October 10, 2010

भारतीय मुसलमानों, ज़रा सी "काफिरगिरी" कर लो.. Ayodhya Verdict Neglect by Muslim Leaders

अयोध्या फैसला आने के बाद 24 घंटों के अन्दर "इस्लाम के ठेकेदारों" के पेट में दर्द शुरू हो गया और अभी तक बदस्तूर जारी है. ये "इस्लाम के ठेकेदार" नहीं चाहते है की भारत में शांति बनी रहे और भारत का आम मुसलमान इस देश की प्रगति में भागीदार बन सके. पाकिस्तान में बैठे अपने आकओं के इशारे पर ये "इस्लाम के ठेकेदार" आम भारतीय मुसलमान के ज़ेहन में ज़हर भर रहे है. इनमे से कुछ प्रमुख इस्लाम के ठेकेदार है. "जाकिर नाइक", "इमाम बुखारी (बिमारी)", "सैयेद अहमद गिलानी", "सीमा पार बैठे उनके आका" और कुछ "जयचंद भारतीय प्रगतिशील पत्रकार और लेखक" .

शाह नवाज़ जैसे भारतीय नागरिक ने जब फैसले को अदालत का आदेश माना तो इस्लाम के ठेकेदार "जाकिर नाइक" ने उसे "काफिर" तक कह दिया. मतलब जो इस्लाम में "कट्टरपंथी" नहीं वो "काफिर" है जिनमे से कुछ काफिर है "हमारे प्रेरणास्त्रोत डॉ अब्दुल कलाम", "शाह नवाज़", शिया नेता "कल्वे जव्वाद: आदि...

"नई दुनिया" में एक मुसलमान "सैइद अंसारी", (जो न्यूज़ 24 में एंकर भी है और 24 घंटे लगातार एंकरिंग के लिए जिनका नाम " लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स" में शामिल हो चूका है) का एक लेख छपा जो "इस्लाम के ठेकेदारों" के मुह पार करार तमाचा है -

प्रस्तुत है "सैयेद अंसारी" का वो लेख - -

"जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर, या फिर वो जगह बता जहाँ खुदा न हो।"

शराब इस्लाम में हराम है। खुदा की इबादत के लिए किसी चहारदीवारी की जरूरत नहीं है। खुदा तो पूरी कायनात में है। केवल इस्लाम ही नहीं, तमाम मजहबों की आत्मा भी इसी दर्शन के इर्द-गिर्द घूमती है। यह बात उन लोगों को समझनी चाहिए जो खुदा के नाम पर मस्जिद बनाने के लिए लाखों जिंदगियों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। इस्लाम का लबादा ओढ़े इन लोगों का असली मकसद अपने स्वार्थ और लालच की दुकानदारी चमकाना है। अयोध्या का रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद भी ऐसे ही लोगों की नफरत की राजनीति चमकाने का नतीजा है। यह विवाद जब तक चलता रहेगा, इनकी दुकानदारी भी तब तक चलती रहेगी।

30 सितंबर को दोपहर साढ़े तीन बजे जब पूरे देश के साथ दुनिया भर के लोग टीवी पर टकटकी लगाए अयोध्या पर फैसले का इंतजार कर रहे थे, ठीक उसी वक्त हिन्दुस्तान का एक आम हिन्दू - मुसलमान डरा-सहमा खुदा से दुआ कर रहा था कि सब कुछ ठीक रहे। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले ने एक आम मुसलमान को तो संतुष्ट कर दिया, लेकिन यही फैसला मजहब की ठेकेदारी करने वाले चंद मुल्ला-मौलवियों को संतुष्ट नहीं कर सका। अब वे सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं और जाएँगे भी। इसके बाद भी अगर इनकी दुकानदारी बंद होती दिखती है तो कोई और रास्ता ढूँढ लेंगे, भले ही वो रास्ता नफरत और समाज को बाँटने का ही क्यों न हो। आखिर इनकी रोजी-रोटी का सवाल जो है और इस रोजी-रोटी को मजहबी जामा पहनाकर मुसलमानों को कैसे गुमराह करना है, ये बखूबी जानते हैं। ये लोग खुदा के घर के नाम पर तमाम जिंदगियाँ तबाह करने पर उतारू हैं।

क्या इन्होंने कभी सोचा है कि खुदा की सबसे प्यारी चीज इंसान के लिए कुछ करें? क्या इन लोगों ने गरीबी के चक्र में फँसे करोड़ों मुसलमानों की जिंदगी की बेहतरी के लिए कोई संवैधानिक तरीके से लड़ाई आज तक लड़ी है? क्या बाबरी मस्जिद बन जाने से एक आम मुसलमान महिला की पथराई आँखों का वो इंतजार खत्म हो जाएगा, जो अपने सिसकते चूल्हे को देखते हुए मजदूरी पर गए पति का इंतजार करती है ताकि वह चूल्हे की आग अपने पति के कदमों की आहट मिलते ही थोड़ी और तेज कर सके? क्या मस्जिद बन जाने के बाद कहीं से कोई फरिश्ता आएगा और गरीबी को अपने साथ उड़ा ले जाएगा? फिर मुसमानों के बच्चे और महिलाएँ शिक्षित होंगी। उनके रुखे-सूखे संसार में खुशहाली आ जाएगी।

सचाई हम सबको पता है, वक्त का तकाजा है चिरनिद्रा को भगाने का और अपनी रूह को जगाने का। कट्टरवाद हर हिन्दुस्तानी मुसलमान में नहीं है। वो रेलवे प्लेटफॉर्म, रेल की बर्थ पर भी नमाज पढ़ता है। वो सड़क पर भी नमाज पढ़ता है, नमाज पढने के लिए उसे मस्जिदों या फिर किसी बाबरी मस्जिद की जरूरत नहीं है क्योंकि वो कितना ही गरीब-अमीर क्यों न हो, वो कितना ही पढ़ा-लिखा या अनपढ़-गँवार क्यों न हो, वो जानता है कि खुदा को केवल उसकी इबादत से मतलब है। वो इबादत उसने कहाँ की, इससे खुदा को कोई फर्क नहीं पड़ता। अल्लाह ने भी आलीशान मस्जिदें बनाने की हिदायत नहीं दी है। औलिया-अल्लाहों ने मस्जिदों और कब्रों को हमेशा कच्ची रखा, लेकिन बादशाहों, शाहंशाहों और मजहबी दुकानदारों ने कच्ची कब्रों को मकबरों में तब्दील कर दिया और मस्जिदों को अज्मतें बख्श दीं। जिस तरह से हमारे देश में सूफियों ने इस्लाम का संदेश दिया, वो संदेश प्यार-मोहब्बत, एकता और भाईचारे का था। इस संदेश से मुसलमानों पर विश्वास किया जाने लगा। मोहब्बत और इबादत हम जानने लगे। यह मोहब्बत आज भी हमारी संस्कृति को महका रही है। आज के मजहबी दुकानदार इन बुजुर्गों की पैरवी क्यों नहीं करते? क्यों जमीन के टुकड़े की जंग लड़ते रहते हैं? इन मौलवियों के कद इतने बुलंद क्यों नहीं होते हैं कि वीराने में भी कोई शाहंशाह चलकर इनके दर तक पहुँचे.

ये मुल्ला-मौलवी अपना किरदार ऐसा बुलंद क्यों नहीं करते कि किसी मस्जिद में जाने से हिन्दू न डरे और मंदिर में मुसलमान। इस मुल्क में मुल्ला-मौलवियों ने कभी यह नहीं सोचा कि मुसलमानों को शिक्षा दी जाए। मुसलमानों के बच्चों के लिए आधुनिक तालीम के अवसर पैदा किए जाएँ। उनके लिए अस्पताल खोले जाएँ। क्यों इन लोगों ने मुसलमानों को सिर्फ मजहबी जुनून की तरफ मोड़ा है। ये मजहब के दुकानदार क्यों कभी भी मुसलमानों के संपूर्ण विकास के लिए आवाज बुलंद नहीं करते हैं। चंदा उगाही सिर्फ मस्जिद के नाम पर ही क्यों करते हैं ये लोग? वक्त आ गया है कि इस्लामी मदरसों से ऐसी आवाज बुलंद हो जिससे इस्लाम के उपदेशों के आधार पर इनसानियत को नई जिंदगी मिले और मुसलमानों को नए-नए रोजगार के अवसर। क्यों ये जिद करते हैं अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की? क्यों एक बार फिर ये आम मुसलमान को डराना चाहते हैं? क्या ६१ सालों तक मुसलमानों के दिल में खौफ और डर पैदा करके इनका मन नहीं भरा?

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के बाद देश के नागरिकों को यह विश्वास हुआ कि अब वे सुरक्षित हैं और अब दंगे नहीं हो सकते। अब उनका कारोबार नहीं उजड़ेगा, अब हर रोज उनके घर में चूल्हा जलेगा। अब उनके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। अदालत के फैसले के बाद देश का हिन्दू - मुसलमान चैन की साँस ले रहा है। उसे फिजां में अमन की खुशबू आ रही है। वह सुकून महसूस कर रहा है लेकिन मजहब के ये दुकानदार बाबरी मस्जिद मामले को जिंदा रखकर अपनी दुकानदारी चलाना चाहते हैं। नहीं चाहते ये मुल्ला-मौलवी कि सुकून में रहे देश का मुसलमान क्यूंकि अगर वो सुकून से रहा तो बंद हो जाएगी बाबरी मस्जिद की दूकान। रूक जायेगा बाबरी मस्जिद के नाम पार करोड़ों रूपये उगाहने का धंधा। इसलिए नहीं चाहते ये लोग की प्यार से रहे देश के "हिन्दू-मुसलमान"। आज देश के "हिन्दू- मुसलमानों" ऐसा माहौल चाहिए जिसकी बुनियाद भाईचारे, अमन और शांति पार टिकी हो, न कि नफ़रत और हिंसा पार टिकी हो। यह आज के हिन्दुस्तान कि पुकार है"
- सैइद अंसारी
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अब भारतीय मुसलमानों को सोचना होगा कि वो क्या एक "सच्चे हिन्दुस्तानी" बनकर नहीं रह सकते ..?? उन्हें ये भी सोचना होगा कि वो अपना आदर्श किसे माने "ज़हर फ़ैलाने वाले जाकिर नाईको" को या देश के गर्व "अब्दुल कलामों" को.. ??

19 comments:

  1. यार सब लोग अब भाईचारे कि सीख क्यूँ दे रहे है, जिसे देखो भाईचारा लेकर दौड़ रहा है. अच्छा एक बात बताओ अगर ये फैसला मुसलमानों के पक्ष में आता तो क्या भगवा वाले भी भाईचारा निभाते,
    एक बात साफ़ कर लो अपने ज़ेहन में जब मुसलमानों का अपना हक नहीं मिला तो मुसलमानों ने उसे छिना है और यही हमारे नबी ने फ़रमाया है. जाकिर नाइक गुमराह मुसलमानों के सही रास्ता दिखा रहे है. उलटी गिनती शुरू है वो दिन दूर नहीं जब वहां पे आलिशान बाबरी मस्जिद ही बनेगी.

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  2. @ Tik Tok
    "एक बात साफ़ कर लो अपने ज़ेहन में जब मुसलमानों का अपना हक नहीं मिला तो मुसलमानों ने उसे छिना है और यही हमारे नबी ने फ़रमाया है"

    ये आपको किसने बताया ?
    आपने ये बात कहाँ से जानी ?
    कोई कुरआन हदीस का हवाला ?
    या फिर जाकिर नाइक से ?

    जाकिर नाइक खुद एक गुमराह मुबल्लिग (धर्म प्रचारक) है वो क्या किसी को रास्ता दिखायेगा !
    सच्चाई जानने के लिए IRF चले जाओ और वहाँ जाकर देख लो !
    सिर्फ टी.वी. पर जाकिर नाइक कि दूसरे धर्मो के बारे में उलटी सीढ़ी बाते सुन कर मन ही मन खुश हो लो !

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  3. टिक टोक की दुकान बन्द करने वालाOctober 10, 2010 at 3:20 PM

    सैयद अंसारी ने ठीक लिखा है, ये तिक तोक जैसे लोग पाकिस्तानी लगते हैं जो छद्मावरण ओढ़कर आये हैं..

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  4. मुसलमान से हिन्दू बने (मौलाना नियाजी) आदमी की ओर सेOctober 10, 2010 at 3:23 PM

    ये तिक तोक जमीन लेकर आया कहां से, अपनी मां के पेट से जमीन लेकर पैदा हुआ था...

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  5. ये मुसलमानों क़े ठेकेदार जबतक भारतीय मुसलमानों को गद्दार साबित नहीं कर देगे तबतक चुप नहीं बैठेगे रही भारतीय मिडिया की ये बिदेशी धन पर पल रहे है तो इनसे भारतीय हित क़ा बिचार रखना गलत फहमी क़ा शिकार होने जैसा है.

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  6. indian Muslims ko CHUTIYA Samjha hai Kya...???

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  7. Bahut hi badhiya aur ankhen kholne vaali post....
    Congrts.

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  8. .

    उन्हें ये भी सोचना होगा कि वो अपना आदर्श किसे माने "ज़हर फ़ैलाने वाले जाकिर नाईको" को या देश के गर्व "अब्दुल कलामों" को.. ??

    I wish them to start thinking logically, rationally and without any bias.

    .

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  9. देश हित में नीचे किये गए लिंक का लेख पढ़ कर सोचे की क्या हमारा भविष्य सुरक्षित है ?

    rahulworldofdream.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html

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  10. शानदार लेख !!!!!!!! धन्यबाद

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  11. jab ye baat tumhein pataa hai ke bagwaan har jagah hai to tum hi kiyuon masjid todkar mandir banana chahate ho desh main kahin bhi mandir bana sakte ho .ya tumhare updesh sirf musalmano ke liyein hain.....irshad malik

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  12. agar hindu itne hi ahinshawadi aur shantiwadi hain to bharat main saare atankwaadi balatkari thag chor dahez hatya karne wale betiyun ko kokh main marne wele mahatma ghandi ka hattyare rajiv ghandi ka hattyare naksali rss ulfha mauowaadi nepal ke saare atankwadi shri lanka ke litte ke atanki hindu kyuon hain.....irshad malik

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  13. mujhe ye batao ke jab hindu naam musalmano ne rakha tha aur tumhein musalmano se itni nafrat hai to apne dharma ka naam pahle badlo......irshad malik

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  14. jab musalmaan itne bure hain to tum apni bahan betyian hamen kiyun dete ho .kiyuon ke shahrukh khan se lekar umar abdulla saare mughal badshsho ki biwiyan hindu thi....irshad malik

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  15. 1. is desh k musalmano ko kisi jakir naik ki jarurat nahi....wo khud sirf adha islam janta hai...wo kya musalmano ko rasta dikhayega...
    2. aaj pure bharat me ek baat common hai..KAHI KISI GOVT.OR PRIVATE PLOT (ROAD,PARK,KOI JAMEEN)PAR KABJA KARNA HO TO WAHA PAR PAHLE BHAGWA LAGA DO FIR PUJA PATH KA DHONG SHURU.AGAR MANDIR HI BANANA HAI TO APNI KAMAI KI DAULAT SE JAMIN KHARID KAR BANAO KYO BECHARE BHAGWAN KO APNI TARAH HARAM KHANE KI ADAT DAL RAHE HO.
    3.IS DESH KE MUSALMAAN BHI SUNE KI HAMARE NABI NE HAR MUSALMAAN PAR ILM(DINI) HASIL KARNA FARZ BATAYA HAI... TO APNE DIN KI TABLIG K LIYE DUNIYAWI ILM BHI JARURI HAI....IS K LIYE SARKAR SE JOB N EDUCATION ME RESERVATION KI MANG KARE AUR SAAF ISHARA KARE UN SARKARO KO JO ANTI MUSLIM HAI KI AGAR MUSALMANO KA HAK CHHINA TO KHAWAJA KE HINDUSTAN ME UNKA NAAMLENE WALA BHI KOI NAHI HOGA.....

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  16. kya hua hinduo se koi jawab nahi diya ja raha .sabki bolti band ho gayi .main musalmano main khot dundne wale sabhi logo se bahas karna chahta hoo. hai kisi main himmat ...........irshad malik

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  17. JARA GAUR KARE WRITER KI BAATO PAR KUCH BAATE HAI JO SACH LIKHI..HAI....
    1. MUSLIM LEADER,AUR AALIM LOGO KO MUSLAMANO KI TARAKKI KE LIYE AAWAJ BULAND KRNI HOGI.. AWAAM GOVT JOBS N EDUCATION ME RESERVATION K LIYE AAWAJ BULAND KRE............

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