मुझे ये समझ में नहीं आता... राजनीति कब से इतनी सीधी होने लगी जितनी हम देख रहे है.
भिंडरावाले को अकाली दल के खिलाफ खड़ी कर देने वाली कांग्रेस, लिट्टे के गढ मे इंडियन आर्मी भेज देने वाली कांग्रेस कब से इतनी सीधी और सरल हो गयी की राजनीति की दुनिया मे एक नौसिखिया "अरविन्द केजरीवाल" उसे चुनौती देने लगे. मुखर मध्यम वर्ग को अपने ही एक एजेंट के पीछे लगा कर विपक्षी पार्टी "भाजपा" के मात्र तीन प्रतिशत वोट काट कर उसे उन्नीस प्रतिशत सीटो का नुकसान कराने का गंडित है, साथ मे चित भी अपनी और पट भी..
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फिलहाल तो सभी इस बन्दर की उछल - कूद देखने में व्यस्त है.. धुआं और धुंध छटने दीजिये...
तब जाकर समझ में आएगा की ये भी "कांग्रेस का एजेंट" निकला...
राजेंद्र
कल का इन्तजार है.
ReplyDeleteसचमुच जैसे बालगंगाधर तिलक,विपिन चन्द्र पाल व लाला लाजपत राय बाली काग्रेस के पदाधिकारियो को लगातार जैलों में सडाकर सर ए ओ ह्यूम ने गोखले गाँधी व नहेरु जैसे चमचों को लाद दिया व इन लोगो को भरपूर सरकारी सहयोग से मीडिया व रेडियों के द्वारा नेता वनाकर प्रखर राष्ट्रवाद की धारा को कुंद करके छदम राष्ट्र वादी अहिंसक कांग्रेस का नवोदय कर अंग्रेजों ने आजादी के समय ही नही आजादी के बाद भी अपना हित साधा और भारत की स्वराज्य की कल्पना को निराधार कर दिया।उसी प्रकार बाबा रामदेव की भ्रष्टाचार के खिलाफ बनायी हुयी जमीन पर अचानक यह अनजाना गाँधी अन्ना हजारे जाने कहाँ से आ गया जिसमें आर एस एस ने भी बिना माँगे अपना समर्थन जारी कर दिया जवकि हर बार अन्ना ने आर एस एस के बारे में एसे बयान दिये कि जैसे यह एक अछूत संगठन है औऱ इसका नाम लेने भर से ही अन्ना की पवित्रता नष्ट हो जाएगी। और उनका यह नया चहेरा केजरी वाल नये नये शिगूफे छोड़ कर वास्तव में कांग्रेस की दलाली ही कर रहा है क्योंकि इसके दुर्भावना पूर्ण विचार जो किसी को भी शशंकित करने के लिए काफी हैं राष्ट्र वादी विचारों बाली भाजपा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं वैसे भी यह केजरी वाल या अन्ना हज यात्रा की सव्सिडी को बड़ा ठीक घोषित कर अपना असली चेहेरा हम जैसे लोगों को तो पहिचनवा ही चुके हैं किन्तु वेचारा सामान्य आम आदमी इस व्यक्ति को ठीक से पहिचानने में गलती अवश्य कर सकता है।और भाजपा की ताकत को कम करके काग्रेस को तीन चार प्रतिशत तक का लाभ तो दिला ही सकता है औऱ यही कांग्रेस चाहती है।वैसे भी कांग्रेस के पास जो अपना वोट वैंक है।उसे तो आप देश की चिन्ता करने बाला समझिये ही मत वह तो देश के विकने की स्थिति में ही कहीं जाने बाला है उसे न तो देश से मतलब है नही समाज से उसे तो केवल मतवब है या तो नोटों से या फिर अपने दीन से
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